प्लूरिसी: Difference between revisions
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शुष्क प्लूरिसी फेफड़े के बैक्टीरियल संक्रमण या छाती की पेशियों के | शुष्क प्लूरिसी फेफड़े के बैक्टीरियल संक्रमण या छाती की पेशियों के ख़ास वायरल संक्रमण से जुड़ी होती है। कुछ मामलों में फेफड़ों की टीबी, ट्यूमर और [[रक्त]] का परिवहन कटने से भी प्लूरा की तहों में सूजन आती है। प्लूरा में पानी भरने का सबसे आम कारण टीबी है। निमोनिया, ट्यूमर, कैंसर, पेट के कुछ ख़ास अंगों की सूजन जैसी बीमारियों में यह तकलीफ हो सकती है। [[हृदय]], [[गुर्दे|गुर्दों]] और [[यकृत]] में से किसी एक के ठीक से काम न करने पर भी प्लूरा में पानी भर सकता है। चोट से प्लूरा में रक्त एकत्र होने व संक्रमण से भी एम्पाइमा हो सकता है। | ||
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Revision as of 13:23, 1 October 2012
प्लूरिसी मानव में होने वाला एक रोग है। फेफड़े और छाती की अन्दरूनी दोहरी परत को ढकने वाली पतली झिल्ली को 'प्लूरा' कहते हैं। अगर इस झिल्ली में किसी तरह का संक्रमण हो जाता है तो उसे 'प्लूरिसी रोग' कहा जाता है।
परिचय
फेफड़े की दो परतों के बीच द्रव्य की एक पतली-सी परत बनी रहती है, जो दोनों सतहों को चिकनाहट प्रदान करती है और फेफड़ों के कार्य करने की गति को सुचारू रूप से चालू करती है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके फेफड़े की झिल्लियाँ थोड़ी मोटी हो जाती है और इसमें पाई जाने वाली दोनों सतह एक-दूसरे से टकराने लगती हैं। इन दोनों सतहों के बीच द्रव्य भरा रहता है, जो इस रोग के कारण एक जगह ठहर जाता है और अपने स्थान से बाहर होकर जमा होने लगता है। झिल्ली में सूजन होने के कारण रोगी को अपनी छाती में तेज चुभन वाला दर्द होता है।
रोग के लक्षण
इस रोग के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- प्लूरिसी रोग से पीड़ित रोगी की छाती में तेज दर्द होता है।
- इस रोग के कारण रोगी को ठंड लगने लगती है तथा रोगी व्यक्ति की छाती भारी हो जाती है और उसे बुखार भी हो जाता है।
- रोगी व्यक्ति को भूख लगना बंद हो जाती है।
- जब रोग की अवस्था गम्भीर हो जाती है तो रोगी की झिल्ली से दूषित द्रव्य बाहर निकलकर छाती में भर जाता है।
- रोगी के शरीर का वजन कम हो जाता है।
- साँस लेने और छोड़ने के साथ छाती में होने वाला तेज दर्द इस रोग का मुख्य लक्षण है।
प्रकार तथा कारण
फेफड़ों की सुरक्षा के लिए प्रकृति ने उन पर पतली दोहरी झिल्ली का एक खोल चढ़ाया हुआ है। यह 'प्लूरा' है, जिसकी एक तह फेफड़ों के बाहरी भाग पर चढ़ी रहती है और दूसरी पसलियों के भीतरी भाग पर। प्लूरिसी में इसी झिल्ली में सूजन आ जाती है। यह सूजन तीन किस्म की हो सकती है- शुष्क प्लूरिसी, नम प्लूरिसी और एम्पाइमा।
शुष्क प्लूरिसी फेफड़े के बैक्टीरियल संक्रमण या छाती की पेशियों के ख़ास वायरल संक्रमण से जुड़ी होती है। कुछ मामलों में फेफड़ों की टीबी, ट्यूमर और रक्त का परिवहन कटने से भी प्लूरा की तहों में सूजन आती है। प्लूरा में पानी भरने का सबसे आम कारण टीबी है। निमोनिया, ट्यूमर, कैंसर, पेट के कुछ ख़ास अंगों की सूजन जैसी बीमारियों में यह तकलीफ हो सकती है। हृदय, गुर्दों और यकृत में से किसी एक के ठीक से काम न करने पर भी प्लूरा में पानी भर सकता है। चोट से प्लूरा में रक्त एकत्र होने व संक्रमण से भी एम्पाइमा हो सकता है।
पुष्टि
छाती के एक्स-रे या अल्ट्रासांउड में प्लूरा में पानी और मवाद के लक्षण दिख जाते हैं। कारण जानने के लिए छाती में सुई से नमूना निकालकर जांच की जाती हैं।
उपचार
इस रोग के प्राकृतिक उपचार के अंतर्गत निम्न उपाय किए जाते हैं-
- प्लूरिसी रोग से पीड़ित रोगी को फलों का रस पीकर कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए।
- उपवास के दौरान रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गर्म पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए और फिर कुछ घंटों तक अपने शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए।
- रोगी व्यक्ति को गुनगुने पानी से शरीर पर स्पंज करना चाहिए और गर्म गीली पट्टी को छाती पर लपेटना चाहिए। इस पट्टी को दिन में 2-3 बार बदल-बदल कर लगाना चाहिए।
- रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सूर्य स्नान और सूखा घर्षण करना चाहिए, जिससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
- रोग का उपचार करने के बाद यदि रोगी के शरीर का तापमान सामान्य हो जाए तथा भूख लगने लगे तो समझना चाहिए की रोगी ठीक हो गया है।
प्लूरिसी में दर्द से राहत के लिए गरम सेंक, गरम पानी की बोतल या इलैक्ट्रिक हीटिंग पैड बहुत लाभदायक है। ऐंटिबायटिक दवाएँ देकर मवाद सुखाने का प्रयास किया जाता है। नियमित श्वास-व्यायाम करने से भी फेफड़े को खुलने में मदद मिलती है। बड़ा गुब्बारा फुलाने जैसा साधारण व्यायाम भी विशेष लाभ प्रदान करता है।
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