भुजरियाँ: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''भुजरियाँ''' स्त्रियों द्वारा गाये जाने वाले गीतों...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''भुजरियाँ''' स्त्रियों द्वारा गाये जाने वाले गीतों का एक प्रकार है। '[[हरियाली तीज]]' पर [[उत्तर प्रदेश]] के [[ब्रज]] और उसके निकटवर्ती प्रांतों में ‘भुजरियाँ’ सिरायी जाती हैं। भुजरियाँ स्त्री गीतों का एक प्रकार होते हुए भी, [[गेहूँ]] की उन बालियों को भी कहते हैं, जो सिराने के निमित्त, तीज के अवसर पर फ़सल की प्राण-प्रतिष्ठा के रूप में, छोटी टोकरियों में उगाई जाती हैं। इन्हें ‘फुलरिया’, ‘धुधिया’, ‘धैंगा’ और ‘जवारा’ (मालवा) भी कहते हैं।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग | '''भुजरियाँ''' स्त्रियों द्वारा गाये जाने वाले गीतों का एक प्रकार है। '[[हरियाली तीज]]' पर [[उत्तर प्रदेश]] के [[ब्रज]] और उसके निकटवर्ती प्रांतों में ‘भुजरियाँ’ सिरायी जाती हैं। भुजरियाँ स्त्री गीतों का एक प्रकार होते हुए भी, [[गेहूँ]] की उन बालियों को भी कहते हैं, जो सिराने के निमित्त, तीज के अवसर पर फ़सल की प्राण-प्रतिष्ठा के रूप में, छोटी टोकरियों में उगाई जाती हैं। इन्हें ‘फुलरिया’, ‘धुधिया’, ‘धैंगा’ और ‘जवारा’ (मालवा) भी कहते हैं।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=465|url=}}</ref> | ||
*भुजरियाँ बोने की प्रथा आठवीं [[शताब्दी]] से प्राचीन प्रतीत होती है। [[पृथ्वीराज चौहान]] के काल की लोक प्रचलित गाथा के अनुसर, [[चंद्रवंश|चंद्रवंशी]] राजा परिमाल की पुत्री चंद्रावली को उसकी माता [[सावन]] में झूला झुलाने के लिए बाग़ में नहीं ले जाती। पृथ्वीराज अपने पुत्र ताहर से उसका [[विवाह]] करना चाहता है। आल्हा-ऊदल उस समय [[कन्नौज]] में थे। ऊदल को स्वप्न में चंद्रावली की कठिनाई का पता चलता है। वह योगी के वेष में आकर उसे झूला झुलाने का आश्वासन देता है। पृथ्वीराज ठीक ऐसे ही अवसर की ताक में था। अपने सैनिकों को भेजकर वह चंद्रावली का अपहरण करना चाहता है। युद्ध होता है। ताहर चंद्रावली को डोले में बिठाकर ले जाना चाहता है, तभी ऊदल, इंदल और लाखन चंद्रावली की रक्षा करके उसकी भुजरियाँ मनाने की इच्छा पूर्ण करते हैं।<ref name="aa"/> | *भुजरियाँ बोने की प्रथा आठवीं [[शताब्दी]] से प्राचीन प्रतीत होती है। [[पृथ्वीराज चौहान]] के काल की लोक प्रचलित गाथा के अनुसर, [[चंद्रवंश|चंद्रवंशी]] राजा परिमाल की पुत्री चंद्रावली को उसकी माता [[सावन]] में झूला झुलाने के लिए बाग़ में नहीं ले जाती। पृथ्वीराज अपने पुत्र ताहर से उसका [[विवाह]] करना चाहता है। आल्हा-ऊदल उस समय [[कन्नौज]] में थे। ऊदल को स्वप्न में चंद्रावली की कठिनाई का पता चलता है। वह योगी के वेष में आकर उसे झूला झुलाने का आश्वासन देता है। पृथ्वीराज ठीक ऐसे ही अवसर की ताक में था। अपने सैनिकों को भेजकर वह चंद्रावली का अपहरण करना चाहता है। युद्ध होता है। ताहर चंद्रावली को डोले में बिठाकर ले जाना चाहता है, तभी ऊदल, इंदल और लाखन चंद्रावली की रक्षा करके उसकी भुजरियाँ मनाने की इच्छा पूर्ण करते हैं।<ref name="aa"/> |
Revision as of 13:56, 27 June 2015
भुजरियाँ स्त्रियों द्वारा गाये जाने वाले गीतों का एक प्रकार है। 'हरियाली तीज' पर उत्तर प्रदेश के ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रांतों में ‘भुजरियाँ’ सिरायी जाती हैं। भुजरियाँ स्त्री गीतों का एक प्रकार होते हुए भी, गेहूँ की उन बालियों को भी कहते हैं, जो सिराने के निमित्त, तीज के अवसर पर फ़सल की प्राण-प्रतिष्ठा के रूप में, छोटी टोकरियों में उगाई जाती हैं। इन्हें ‘फुलरिया’, ‘धुधिया’, ‘धैंगा’ और ‘जवारा’ (मालवा) भी कहते हैं।[1]
- भुजरियाँ बोने की प्रथा आठवीं शताब्दी से प्राचीन प्रतीत होती है। पृथ्वीराज चौहान के काल की लोक प्रचलित गाथा के अनुसर, चंद्रवंशी राजा परिमाल की पुत्री चंद्रावली को उसकी माता सावन में झूला झुलाने के लिए बाग़ में नहीं ले जाती। पृथ्वीराज अपने पुत्र ताहर से उसका विवाह करना चाहता है। आल्हा-ऊदल उस समय कन्नौज में थे। ऊदल को स्वप्न में चंद्रावली की कठिनाई का पता चलता है। वह योगी के वेष में आकर उसे झूला झुलाने का आश्वासन देता है। पृथ्वीराज ठीक ऐसे ही अवसर की ताक में था। अपने सैनिकों को भेजकर वह चंद्रावली का अपहरण करना चाहता है। युद्ध होता है। ताहर चंद्रावली को डोले में बिठाकर ले जाना चाहता है, तभी ऊदल, इंदल और लाखन चंद्रावली की रक्षा करके उसकी भुजरियाँ मनाने की इच्छा पूर्ण करते हैं।[1]
- ‘नागपंचमी’ को भी भुजरियाँ उगाई जाती हैं। उसे पूजा के पश्चात ‘भुजरियाँ’ गाते हुए नदी अथवा तालाब या कुएँ में सिराया जाता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख