दया याचिका: Difference between revisions

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* सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड [[आर. वेंकटरमण]] (1987-1992) के नाम है। उन्होंने 44 दया याचिकाएं खारिज कीं।
* सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड [[आर. वेंकटरमण]] (1987-1992) के नाम है। उन्होंने 44 दया याचिकाएं खारिज कीं।
* देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 30 दोषियों की दया याचिकाएं स्वीकार कर लीं। सरकारों पर अपने राजनीतिक हित के मुताबिक राष्ट्रपति को सिफारिशें भेजने का आरोप लगता रहा है।<ref>{{cite web |url=http://aajtak.intoday.in/story/10-things-you-should-know-about-mercy-pleas-1-824148.html |title= दया याचिका के बारे में 10 जरूरी बातें|accessmonthday=5 फरवरी|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= html|publisher=आज तक|language=हिन्दी }}</ref>
* देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 30 दोषियों की दया याचिकाएं स्वीकार कर लीं। सरकारों पर अपने राजनीतिक हित के मुताबिक राष्ट्रपति को सिफारिशें भेजने का आरोप लगता रहा है।<ref>{{cite web |url=http://aajtak.intoday.in/story/10-things-you-should-know-about-mercy-pleas-1-824148.html |title= दया याचिका के बारे में 10 जरूरी बातें|accessmonthday=5 फरवरी|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= html|publisher=आज तक|language=हिन्दी }}</ref>
 
==स्मरणीय तथ्य==
 
* एक रिपोर्ट के अनुसार 26 जनवरी 1950 से अब तक (2015) देश के राष्ट्रपति ने कुल 437 दया याचिकाओं में से 306 को स्वीकार किया। मृत्युदंड पाये 306 दोषियों की सजा राष्ट्रपति ने आजीवन कारावास में बदल दी जबकि 131 दया याचिकाओं को इस अवधि के दौरान खारिज कर दिया गया। रिपोर्ट में आतंकवाद और देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने वालों के अलावा मृत्युदंड समाप्त करने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि 1950 से 1982  के दौरान छह राष्ट्रपति हुए और इस अवधि में मृत्युदंड पाये 262 दोषियों की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया और सिर्फ एक दया याचिकाओं के आंकड़े अभिलेखीय शोध पर आधारित हैं। 





Revision as of 14:56, 5 February 2016

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के मुताबिक, राष्ट्रपति फांसी की सजा को माफ कर सकते हैं, स्थगित कर सकते हैं, कम कर सकते हैं या उसमें बदलाव कर सकते हैं। लेकिन राष्ट्रपति अपनी मर्जी से ऐसा नहीं करते। संविधान में साफ कहा गया है कि राष्ट्रपति मंत्री परिषद से सलाह लेकर ही सजा माफ कर सकते हैं या उसमें छूट दे सकते हैं।

दया याचिका के नियम, प्रक्रिया और इतिहास

  • मौजूदा नियमों के मुताबिक, दया याचिका मामले पर गृह मंत्रालय राष्ट्रपति को लिखित में अपना पक्ष देता है। इसे ही कैबिनेट का पक्ष मानकर राष्ट्रपति दया याचिका पर फैसला लेते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बाद कोई भी शख्स, विदेशी नागरिक भी, अपराधी के संबंध में राष्ट्रपति के दफ्तर या गृह मंत्रालय को दया याचिका भेज सकता है। संबंधित राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकती है। राज्यपाल अपने पास आने वाली दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय को भेज देते हैं।
  • दोषी व्यक्ति अधिकारियों, वकीलों या परिवार के लोगों के जरिये दया याचिकाएं भेज सकते हैं। गृह मंत्रालय या राष्ट्रपति के दफ्तर को याचिकाएं मेल भी की जा सकती हैं।
  • अलग-अलग राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं का अलग-अलग तरह से निपटारा किया है। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। लिहाजा राष्ट्रपति और गृह मंत्रालय, दोनों के पास कई याचिकाएं कई साल तक लंबित रही हैं।
  • पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का जब कार्यकाल खत्म हुआ तो वह करीब 2 दर्जन दया याचिकाएं लंबित छोड़कर गए। उन्होंने सिर्फ दो दया याचिकाओं का निपटारा किया। रेप और मर्डर के दोषी धनंजय चटर्जी की दया याचिका को 2004 में उन्होंने खारिज कर दिया और 2006 में खीरज राम की फांसी की सजा कम करके उम्रकैद में तब्दील कर दी।
  • अब्दुल कलाम के बाद के. आर. नारायणन राष्ट्रपति बने। उन्होंने 1997 से 2002 के बीच अपने कार्यकाल में एक भी दया याचिका का निपटारा नहीं किया।
  • हालांकि ज्यादातर राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं पर बिना किसी दया के फैसले लिए। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, 1991 से 2010 के बीच 77 दया याचिकाओं में से राष्ट्रपतियों ने 69 को खारिज कर दिया।
  • सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड आर. वेंकटरमण (1987-1992) के नाम है। उन्होंने 44 दया याचिकाएं खारिज कीं।
  • देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 30 दोषियों की दया याचिकाएं स्वीकार कर लीं। सरकारों पर अपने राजनीतिक हित के मुताबिक राष्ट्रपति को सिफारिशें भेजने का आरोप लगता रहा है।[1]

स्मरणीय तथ्य

  • एक रिपोर्ट के अनुसार 26 जनवरी 1950 से अब तक (2015) देश के राष्ट्रपति ने कुल 437 दया याचिकाओं में से 306 को स्वीकार किया। मृत्युदंड पाये 306 दोषियों की सजा राष्ट्रपति ने आजीवन कारावास में बदल दी जबकि 131 दया याचिकाओं को इस अवधि के दौरान खारिज कर दिया गया। रिपोर्ट में आतंकवाद और देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने वालों के अलावा मृत्युदंड समाप्त करने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि 1950 से 1982 के दौरान छह राष्ट्रपति हुए और इस अवधि में मृत्युदंड पाये 262 दोषियों की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया और सिर्फ एक दया याचिकाओं के आंकड़े अभिलेखीय शोध पर आधारित हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दया याचिका के बारे में 10 जरूरी बातें (हिन्दी) (html) आज तक। अभिगमन तिथि: 5 फरवरी, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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