रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड): Difference between revisions
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|पाठ 3=[[रामचरितमानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड)|बालकाण्ड]], [[रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड)|अयोध्या काण्ड]], [[रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्यकाण्ड)|अरण्यकाण्ड]], [[रामचरितमानस चतुर्थ सोपान (किष्किंधा काण्ड)|किष्किंधा काण्ड]], [[रामचरितमानस पंचम सोपान (सुंदरकाण्ड)|सुंदरकाण्ड]], [[रामचरितमानस षष्ठ सोपान (लंकाकाण्ड)|लंकाकाण्ड]], [[रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तरकाण्ड)|उत्तरकाण्ड]] | |||
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Revision as of 08:36, 24 June 2016
रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड)
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
जिनकी गोद में हिमाचल सुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा, कंठ में हलाहल विष और वक्षःस्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहारकर्ता (या भक्तों के पापनाशक), सर्वव्यापक, कल्याण रूप, चन्द्रमा के समान शुभ्रवर्ण श्री शंकरजी सदा मेरी रक्षा करें॥1॥
रघुकुल को आनंद देने वाले श्री रामचन्द्रजी के मुखारविंद की जो शोभा राज्याभिषेक से (राज्याभिषेक की बात सुनकर) न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवास के दुःख से मलिन ही हुई, वह (मुखकमल की छबि) मेरे लिए सदा सुंदर मंगलों की देने वाली हो॥2॥
नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में (क्रमशः) अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्री रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥3॥ |
left|30px|link=रामचरितमानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड)|पीछे जाएँ | रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) | right|30px|link=श्री गुरु चरन सरोज रज|आगे जाएँ |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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