एकु मैं मंद मोहबस: Difference between revisions
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एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान। | एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान। | ||
पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान॥2॥ | पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान॥2॥ |
Revision as of 10:29, 17 May 2016
एकु मैं मंद मोहबस
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान। |
- भावार्थ
एक तो मैं यों ही मंद हूँ, दूसरे मोह के वश में हूँ, तीसरे हृदय का कुटिल और अज्ञान हूँ, फिर हे दीनबंधु भगवान्! प्रभु (आप) ने भी मुझे भुला दिया!॥2॥
left|30px|link=पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही|पीछे जाएँ | एकु मैं मंद मोहबस | right|30px|link=जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख