सभा माझ परि ब्याकुल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "चौपाई छंद" to "चौपाई, छंद")
 
Line 14: Line 14:
|देश =  
|देश =  
|विषय =  
|विषय =  
|शैली =[[सोरठा]], [[चौपाई]] [[छंद]] और [[दोहा]]
|शैली =[[सोरठा]], [[चौपाई]], [[छंद]] और [[दोहा]]
|मुखपृष्ठ_रचना =  
|मुखपृष्ठ_रचना =  
|विधा =  
|विधा =  

Latest revision as of 08:23, 24 May 2016

सभा माझ परि ब्याकुल
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अरण्यकाण्ड
दोहा

सभा माझ परि ब्याकुल बहु प्रकार कह रोइ।
तोहि जिअत दसकंधर मोरि कि असि गति होइ॥21 ख॥

भावार्थ

(रावण की) सभा के बीच वह व्याकुल होकर पड़ी हुई बहुत प्रकार से रो-रोकर कह रही है कि अरे दशग्रीव! तेरे जीते जी मेरी क्या ऐसी दशा होनी चाहिए?॥21 (ख)॥



left|30px|link=रिपु रुज पावक पाप प्रभु|पीछे जाएँ सभा माझ परि ब्याकुल right|30px|link=सुनत सभासद उठे अकुलाई|आगे जाएँ


दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख