राम बिरह सागर महँ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 29: Line 29:
|टिप्पणियाँ =  
|टिप्पणियाँ =  
}}
}}
 
;भरत-हनुमान-मिलन
{{poemopen}}
{{poemopen}}
<poem>
<poem>

Revision as of 09:49, 16 July 2016

राम बिरह सागर महँ
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
भरत-हनुमान-मिलन
दोहा

राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत।
बिप्र रूप धरि पवनसुत आइ गयउ जनु पोत॥1क॥

भावार्थ

श्रीराम जी के विरह समुद्र में भरत जी का मन डूब रहा था, उसी समय पवनपुत्र हनुमान जी ब्राह्मण का रूप धरकर इस प्रकार आ गए, मानो (उन्हें डूबने से बचाने के लिए) नाव आ गई हो॥1 (क)॥


left|30px|link=मोरे जियँ भरोस दृढ़ सोई|पीछे जाएँ राम बिरह सागर महँ right|30px|link=बैठे देखि कुसासन|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख