होइ न बिषय बिराग: Difference between revisions

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होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन॥
होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन॥
हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु॥ 142॥
हृदयँ बहुत दु:ख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु॥ 142॥
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Latest revision as of 14:04, 2 June 2017

होइ न बिषय बिराग
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
सोरठा

होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन॥
हृदयँ बहुत दु:ख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु॥ 142॥

भावार्थ-

घर में रहते बुढ़ापा आ गया, परंतु विषयों से वैराग्य नहीं होता (इस बात को सोचकर) उनके मन में बड़ा दुःख हुआ कि हरि की भक्ति बिना जन्म यों ही चला गया॥ 142॥


left|30px|link=सांख्य सास्त्र जिन्ह प्रगट बखाना|पीछे जाएँ होइ न बिषय बिराग right|30px|link=बरबस राज सुतहि तब दीन्हा|आगे जाएँ

सोरठा-मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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