उमा जे राम चरन रत: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
Line 35: | Line 35: | ||
;दोहा | ;दोहा | ||
उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध। | उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध। | ||
निज प्रभुमय देखहिं | निज प्रभुमय देखहिं जगत् केहि सन करहिं बिरोध॥112 ख॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
([[शिव|शिव जी]] कहते हैं-) हे उमा! जो [[राम|श्रीराम जी]] के चरणों के प्रेमी हैं और काम, अभिमान तथा [[क्रोध]] से रहित हैं, वे | ([[शिव|शिव जी]] कहते हैं-) हे उमा! जो [[राम|श्रीराम जी]] के चरणों के प्रेमी हैं और काम, अभिमान तथा [[क्रोध]] से रहित हैं, वे जगत् को अपने प्रभु से भरा हुआ देखते हैं, फिर वे किससे वैर करें॥112 (ख)॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=तुरत भयउँ मैं काग तब |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सुनु खगेस नहिं कछु रिषि दूषन}} | {{लेख क्रम4| पिछला=तुरत भयउँ मैं काग तब |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सुनु खगेस नहिं कछु रिषि दूषन}} | ||
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। | '''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। |
Latest revision as of 13:48, 30 June 2017
उमा जे राम चरन रत
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध। |
- भावार्थ
(शिव जी कहते हैं-) हे उमा! जो श्रीराम जी के चरणों के प्रेमी हैं और काम, अभिमान तथा क्रोध से रहित हैं, वे जगत् को अपने प्रभु से भरा हुआ देखते हैं, फिर वे किससे वैर करें॥112 (ख)॥
left|30px|link=तुरत भयउँ मैं काग तब|पीछे जाएँ | उमा जे राम चरन रत | right|30px|link=सुनु खगेस नहिं कछु रिषि दूषन|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-530
संबंधित लेख