विशाखा कुण्ड वृन्दावन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==")
m (Text replace - "{{Incomplete}}" to "")
Line 1: Line 1:
{{Incomplete}}
 
यह वृन्दावन में स्थित है। मथुरा से वृन्दावन 12 कि.मी. है। जिस प्रकार [[सेवाकुंज]] में [[ललिता कुण्ड काम्यवन|ललिता कुण्ड]] है, उसी प्रकार से [[निधिवन वृन्दावन|निधुवन]] में विशाखा कुण्ड है। यहाँ भी प्रियसखी विशाखा की प्यास बुझाने के लिए श्रीराधाबिहारीजी ने अपने वेणु से कुण्ड प्रकाश कर उसके मीठे, सुस्वादु जल से विशाखा और सखियों की प्यास बुझाई थी।  कालान्तर में प्रसिद्ध भक्ति संगीतज्ञ स्वामी [[हरिदास]] जी ने इस निधुवन के विशाखा-कुण्ड से श्री बाँकेबिहारी ठाकुर जी को प्राप्त किया था।
यह वृन्दावन में स्थित है। मथुरा से वृन्दावन 12 कि.मी. है। जिस प्रकार [[सेवाकुंज]] में [[ललिता कुण्ड काम्यवन|ललिता कुण्ड]] है, उसी प्रकार से [[निधिवन वृन्दावन|निधुवन]] में विशाखा कुण्ड है। यहाँ भी प्रियसखी विशाखा की प्यास बुझाने के लिए श्रीराधाबिहारीजी ने अपने वेणु से कुण्ड प्रकाश कर उसके मीठे, सुस्वादु जल से विशाखा और सखियों की प्यास बुझाई थी।  कालान्तर में प्रसिद्ध भक्ति संगीतज्ञ स्वामी [[हरिदास]] जी ने इस निधुवन के विशाखा-कुण्ड से श्री बाँकेबिहारी ठाकुर जी को प्राप्त किया था।
==स्वामी हरिदास==
==स्वामी हरिदास==

Revision as of 13:17, 15 December 2010

यह वृन्दावन में स्थित है। मथुरा से वृन्दावन 12 कि.मी. है। जिस प्रकार सेवाकुंज में ललिता कुण्ड है, उसी प्रकार से निधुवन में विशाखा कुण्ड है। यहाँ भी प्रियसखी विशाखा की प्यास बुझाने के लिए श्रीराधाबिहारीजी ने अपने वेणु से कुण्ड प्रकाश कर उसके मीठे, सुस्वादु जल से विशाखा और सखियों की प्यास बुझाई थी। कालान्तर में प्रसिद्ध भक्ति संगीतज्ञ स्वामी हरिदास जी ने इस निधुवन के विशाखा-कुण्ड से श्री बाँकेबिहारी ठाकुर जी को प्राप्त किया था।

स्वामी हरिदास

स्वामी हरिदास जी श्री बिहारी जी को अपने स्वरचित पदों के द्वारा वीणा यंत्र पर मधुर गायन कर प्रसन्न करते थे तथा गायन करते हुए ऐसे तन्मय हो जाते कि उन्हें तन-मन की सुध नहीं रहती। प्रसिद्ध बैजूबावरा और तानसेन इन्हीं के शिष्य थे। अपने सभारत्न तानसेन के मुख से स्वामी हरिदास जी की प्रशंसा सुनकर सम्राट अकबर इनकी संगीत कला का रसास्वादन करना चाहता था। किन्तु, स्वामी हरिदासजी का यह दृढ़ निश्चय था कि अपने ठाकुर जी के अतिरिक्त वे किसी का भी मनोरंजन नहीं करेंगे।


एक समय सम्राट अकबर वेश बदलकर साधारण व्यक्ति की भाँति तानसेन के साथ निधुवन में स्वामी हरिदास की कुटी में उपस्थित हुआ। संगीतज्ञ तानसेन ने जानबूझकर अपनी वीणा लेकर एक मधुर पद का गायन किया। अकबर तानसेन का गायन सुनकर मुग्ध हो गया। इतने में स्वामी हरिदास जी तानसेन के हाथ से वीणा लेकर स्वयं उस पद का गायन करते हुए तानसेन की त्रुटियों की ओर इंगित करने लगे। उनका गायन इतना मधुर और आकर्षक था कि वन की हिरणियाँ और पशु-पक्षी भी वहाँ उपस्थित होकर मौन भाव से श्रवण करने लगे। सम्राट अकबर के विस्मय का ठिकाना नहीं रहा। वे प्रसन्न होकर स्वामी हरिदास को कुछ भेंट करना चाहते थे, किन्तु बुद्धिमान तानसेन ने इशारे से इसके लिए सम्राट को निषेध कर दिया अन्यथा हरिदास जी का रूप ही कुछ बदल गया होता। इन महापुरुष की समाधि निधुवन में अभी भी वर्तमान है।


संबंधित लेख