जैन उपनीति संस्कार: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
Line 3: | Line 3: | ||
*यदि किसी कारण नियत समय तक उपनयन विधान न हो सका तो ब्राह्मणों की सोलह वर्ष तक, क्षत्रियों को बाईस वर्ष तक और वैश्यों को चौबीस वर्ष तक यज्ञोपवीत संस्कार कर लेना उचित हे। | *यदि किसी कारण नियत समय तक उपनयन विधान न हो सका तो ब्राह्मणों की सोलह वर्ष तक, क्षत्रियों को बाईस वर्ष तक और वैश्यों को चौबीस वर्ष तक यज्ञोपवीत संस्कार कर लेना उचित हे। | ||
*पूजा-प्रतिष्ठा, जप, हवन आदि करने के लिए इस संस्कार को आवश्यक बतलाया है। | *पूजा-प्रतिष्ठा, जप, हवन आदि करने के लिए इस संस्कार को आवश्यक बतलाया है। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= |
Revision as of 12:20, 10 January 2011
- इस उपनीति संस्कार को उपनयन एवं यज्ञोपवीत भी कहते हैं।
- इसका विधान है कि यह संस्कार ब्राह्मणों को गर्भ से आठवें वर्ष में, क्षत्रियों को ग्यारहवें वर्ष में और वैश्यों को बारहवें वर्ष में करना चाहिए।
- यदि किसी कारण नियत समय तक उपनयन विधान न हो सका तो ब्राह्मणों की सोलह वर्ष तक, क्षत्रियों को बाईस वर्ष तक और वैश्यों को चौबीस वर्ष तक यज्ञोपवीत संस्कार कर लेना उचित हे।
- पूजा-प्रतिष्ठा, जप, हवन आदि करने के लिए इस संस्कार को आवश्यक बतलाया है।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख