मदर टेरेसा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "ह्रदय" to "हृदय")
Line 7: Line 7:


==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को 'यूगोस्लाविया' में हुआ। उनका वास्तविक नाम है- '''एग्नेस गोनक्शा बोजाक्शिहउ'''। उनके पिता एक साधारण व्यवसायी थे। एक रोमन कैथोलिक संगठन की वे सक्रिय सदस्य थीं और 12 वर्ष की अल्पायु में ही उनके ह्रदय में विराट करुणा का बीज अंकुरित हो उठा था।
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को 'यूगोस्लाविया' में हुआ। उनका वास्तविक नाम है- '''एग्नेस गोनक्शा बोजाक्शिहउ'''। उनके पिता एक साधारण व्यवसायी थे। एक रोमन कैथोलिक संगठन की वे सक्रिय सदस्य थीं और 12 वर्ष की अल्पायु में ही उनके हृदय में विराट करुणा का बीज अंकुरित हो उठा था।


==ईसाई मिशनरी==
==ईसाई मिशनरी==

Revision as of 14:44, 5 December 2010

मदर टेरेसा
Mother Teresa|thumb
जन्म 26 अगस्त 1910 - मृत्यु 5 सितंबर 1997

करुणा और सेवा की साकार मूर्ति मदर टेरेसा ने जिस आत्मीयता से भारत के दीन-दुखियों की सेवा की है, उसके लिए देश सदैव उनका ऋणी रहेगा।

भारत आगमन

वे 1929 में यूगोस्लाविया से भारत आईं और कलकत्ता को केन्द्र मानकर उन्होंने अपनी गतिविधियाँ शुरू कीं। तभी से अधिक आयु होने पर भी अपनी हज़ारों स्वयं सेविकाओं के साथ अनाथ, अनाश्रित एवं पीड़ितों के उद्धार कार्य में अथक रूप से लगी हुई थीं। मदर टेरेसा को पीड़ित मानवता की सेवा के लिए विश्व के अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें पद्मश्री 1962, नोबेल पुरस्कार 1979, भारत का सर्वोच्च पुरस्कार 'भारत रत्न' 1980 में, मेडल आफ़ फ्रीडम 1985 प्रमुख हैं।

जीवन परिचय

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को 'यूगोस्लाविया' में हुआ। उनका वास्तविक नाम है- एग्नेस गोनक्शा बोजाक्शिहउ। उनके पिता एक साधारण व्यवसायी थे। एक रोमन कैथोलिक संगठन की वे सक्रिय सदस्य थीं और 12 वर्ष की अल्पायु में ही उनके हृदय में विराट करुणा का बीज अंकुरित हो उठा था।

ईसाई मिशनरी

1925 में यूगोस्लाविया के ईसाई मिशनरियों का एक दल सेवाकार्य हेतु भारत आया और यहाँ की निर्धनता तथा कष्टों के बारे में एक पत्र, सहायतार्थ, अपने देश भेजा। इस पत्र को पढ़कर एग्नेस भारत में सेवाकार्य को आतुर हो उठीं और 19 वर्ष की आयु में भारत आ गईं।

मिशनरीज़ की स्थापना

मदर टेरेसा कॅथोलिक नन थीं। समाजसेवा के लिए उन्होंने मिशनरीज़ की स्थापना की।

समाजसेवा का व्रत

मदर टेरेसा जब भारत आईं तो उन्होंने यहाँ बेसहारा और विकलांग बच्चों तथा सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आँखों से देखा और फिर वे भारत से मुँह मोड़ने का साहस नहीं कर सकीं। वे यहीं पर रुक गईं और जनसेवा का व्रत ले लिया, जिसका वे अनवरत पालन कर रही हैं। मदर टेरेसा ने भ्रूण हत्या के विरोध में सारे विश्व में अपना रोष दर्शाते हुए अनाथ एवं अवैध संतानों को अपनाकर मातृत्व-सुख प्रदान किया है। उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोत-सिसकते रोगी अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केन्द्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया, या कम से कम उनके अन्तिम समय को शान्तिपूर्ण बना दिया। दुखी मानवता की सेवा ही उनके जीवन का व्रत है।

भारत रत्न

1980 में मदर टेरेसा को उनके द्वारा किये गये कार्यों के कारण भारत सरकार ने "भारत रत्‍न" से विभूषित किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

बाहरी कड़ियाँ

मदर टेरेसा वक्तव्य विडियो

संबंधित लेख