गृद्धपिच्छ: Difference between revisions
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Revision as of 09:56, 2 January 2011
आचार्य गृद्धपिच्छ
- आचार्य वीरसेन और आचार्य विद्यानन्द ने इनका आचार्य गृद्धपिच्छ नाम से उल्लेख किया है।
- दसवीं-11वीं शताब्दी के शिलालेखों तथा इस समय में अथवा उत्तरकाल में रचे गये साहित्य में इनके-
- उमास्वामी और
- उमास्वाति ये दो नाम भी उपलब्ध हैं।
- इनका समय विक्रम की प्रथम शताब्दी है। ये सिद्धान्त, दर्शन और न्याय तीनों विषयों के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनका रचा एकमात्र सूत्रग्रन्थ 'तत्त्वर्थसूत्र' है, जिस पर
- पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि,
- अकलंकदेव ने तत्त्वार्थवार्तिक एवं भाष्य,
- विद्यानन्द ने तत्त्वार्थश्लोक वार्तिक एवं भाष्य और
- श्रुतसागरसूरि ने तत्त्वार्थवृत्ति-ये चार विशाल टीकायें लिखी हैं।
- श्वेताम्बर परम्परा में तत्त्वार्थभाष्य और सिद्धसेन गणी की तत्त्वार्थव्याख्या- ये दो व्याख्याएँ रची गयी हैं। इसमें सिद्धान्त, दर्शन और न्याय की विशद एवं संक्षेप में प्ररूपणा की गयी है[1]।
- उत्तरवर्ती आचार्यों ने इसका बड़ा महत्त्व घोषित करते हुए लिखा है कि जो इस दस अध्यायों वाले तत्त्वार्थसूत्र का एक बार भी पाठ करता है उसे एक उपवास का फल प्राप्त होता है।[2]