रणथम्भौर क़िला: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "दरवाजा" to "दरवाज़ा")
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Ranthambore-Fort.jpg|thumb|240px|रणथम्भौर क़िला <br />Ranthambore Fort]]
[[चित्र:Ranthambore-Fort.jpg|thumb|240px|रणथम्भौर क़िला <br />Ranthambore Fort]]
[[राजस्थान]] के [[सवाईमाधोपुर ज़िला|सवाईमाधोपुर ज़िले]] में स्थित रणथम्भौर प्राचीन ऐतिहासिक एवं सामरिक महत्व के दुर्गों में अपना स्थान रखता है। यह अत्यंत विशाल पहाड़ी दुर्ग है। अपनी प्राकृतिक बनावट के कारण यह काफ़ी प्रसिद्ध है। यद्यपि यह दुर्ग ऊँची पहाड़ियों के पठार पर बना हुआ है, परंतु प्रकृति ने इसे अपने अंक में इस तरह भर लिया है कि मुख्य द्वार पर पहुँचकर ही इस दुर्ग के दर्शन किये जा सकते हैं। परंतु इस दुर्ग के प्रचीर से काफ़ी दूर तक शत्रु पर निगाह रखी जा सकती थी। यह क़िला चारों ओर सघन वनों से आच्छादित चम्बल की घाटी पर नियंत्रण रखता था।  
[[राजस्थान]] के [[सवाईमाधोपुर ज़िला|सवाईमाधोपुर ज़िले]] में स्थित रणथम्भौर प्राचीन ऐतिहासिक एवं सामरिक महत्व के दुर्गों में अपना स्थान रखता है। यह अत्यंत विशाल पहाड़ी दुर्ग है। अपनी प्राकृतिक बनावट के कारण यह काफ़ी प्रसिद्ध है। यद्यपि यह दुर्ग ऊँची पहाड़ियों के पठार पर बना हुआ है, परंतु प्रकृति ने इसे अपने अंक में इस तरह भर लिया है कि मुख्य द्वार पर पहुँचकर ही इस दुर्ग के दर्शन किये जा सकते हैं। परंतु इस दुर्ग के प्राचीर से काफ़ी दूर तक शत्रु पर निगाह रखी जा सकती थी। यह क़िला चारों ओर सघन वनों से आच्छादित चम्बल की घाटी पर नियंत्रण रखता था।  
==निर्माण==
==निर्माण==
रणथम्भौर के निर्माण का समय एवं निर्माता के बारे में निश्चित जानकारी नहीं है। सामान्यतः यह माना जाता है कि इस क़िले का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था। ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी तक इस क़िले की प्रसिद्धि इतनी फैल चुकी थी कि तत्कालीन समय के विभिन्न ऐतिहासिक महत्व के ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इतिहास में सर्वप्रथम इस क़िले पर [[चौहान वंश|चौहानों]] के आधिपत्य का उल्लेख मिलता है। यह सम्भव है, कि चौहान शासक रंतिदेव ने इसका निर्माण करवाया हो।  
रणथम्भौर के निर्माण का समय एवं निर्माता के बारे में निश्चित जानकारी नहीं है। सामान्यतः यह माना जाता है कि इस क़िले का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था। ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी तक इस क़िले की प्रसिद्धि इतनी फैल चुकी थी कि तत्कालीन समय के विभिन्न ऐतिहासिक महत्व के ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इतिहास में सर्वप्रथम इस क़िले पर [[चौहान वंश|चौहानों]] के आधिपत्य का उल्लेख मिलता है। यह सम्भव है, कि चौहान शासक रंतिदेव ने इसका निर्माण करवाया हो।  

Revision as of 06:40, 3 February 2011

thumb|240px|रणथम्भौर क़िला
Ranthambore Fort
राजस्थान के सवाईमाधोपुर ज़िले में स्थित रणथम्भौर प्राचीन ऐतिहासिक एवं सामरिक महत्व के दुर्गों में अपना स्थान रखता है। यह अत्यंत विशाल पहाड़ी दुर्ग है। अपनी प्राकृतिक बनावट के कारण यह काफ़ी प्रसिद्ध है। यद्यपि यह दुर्ग ऊँची पहाड़ियों के पठार पर बना हुआ है, परंतु प्रकृति ने इसे अपने अंक में इस तरह भर लिया है कि मुख्य द्वार पर पहुँचकर ही इस दुर्ग के दर्शन किये जा सकते हैं। परंतु इस दुर्ग के प्राचीर से काफ़ी दूर तक शत्रु पर निगाह रखी जा सकती थी। यह क़िला चारों ओर सघन वनों से आच्छादित चम्बल की घाटी पर नियंत्रण रखता था।

निर्माण

रणथम्भौर के निर्माण का समय एवं निर्माता के बारे में निश्चित जानकारी नहीं है। सामान्यतः यह माना जाता है कि इस क़िले का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था। ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी तक इस क़िले की प्रसिद्धि इतनी फैल चुकी थी कि तत्कालीन समय के विभिन्न ऐतिहासिक महत्व के ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इतिहास में सर्वप्रथम इस क़िले पर चौहानों के आधिपत्य का उल्लेख मिलता है। यह सम्भव है, कि चौहान शासक रंतिदेव ने इसका निर्माण करवाया हो। thumb|240px|left|रणथम्भौर में हिरन

शासन

मुहम्मद ग़ोरी के हाथों तराइन में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद उसका पुत्र गोविन्दराज दिल्ली और अजमेर छोड़कर रणथम्भौर आ गया और यहाँ शासन करने लगा। उसके बाद लगभग सौ वर्षों तक चौहान रणथम्भौर पर शासन करते रहे। उनके समय में दुर्ग के वैभव में वृद्धि हुई। चौहान शासक हम्मीर के समय सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने 1301 ई. में इस दुर्ग पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। कालांतर में इस दुर्ग पर लम्बे समय तक मेवाड़ की प्रभुसत्ता रही। अंततः 1559 ई. में बूँदी के हाड़ा राव सुर्जनसिंह का इस पर अधिकार हो गया। सम्राट अकबर ने इस क़िले को 1569 ई. में राव सुर्जन से जीत लिया। अगले दो सौ वर्षों तक इस पर मुग़लों का अधिकार बना रहा। thumb|240px|रणथम्भौर
Ranthambore

कलात्मक भवन

चौहान शासकों ने इस दुर्ग में अनेक देवालयों, सरोवरों तथा भवनों का निर्माण करवाया था। चित्तौड़ के गुहिल शासकों ने भी इसमें कई भवन बनवाये। बाद में मुस्लिम विजेताओं ने कई भव्य देवालयों को नष्ट कर दिया। वर्तमान में क़िले में मौज़ूद नौलखा दरवाज़ा, दिल्ली दरवाज़ा, तोरणद्वार, हम्मीर के पिता जेतसिंह की छतरी, पुष्पवाटिका, गणेशमन्दिर, गुप्तगंगा, बादल महल, हम्मीर कचहरी, जैन मन्दिर आदि का ऐतिहासिक महत्व है। दुर्ग में आकर्षित करने वाले कलात्मक भवन अब नहीं रहे, फिर भी उसकी सुदृढ़ता, विशालता तथा उसकी घाटियों की रमणीयता दर्शकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख