अन्हिलवाड़: Difference between revisions
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Revision as of 08:07, 14 February 2011
गुजरात के पाटन नगर को मध्यकालीन अन्हिलवाड़ से समीकृत करते हैं, जो गुजरात के मेहसाणा के उत्तर-पश्चिम में 40 किलोमीटर दूर अवस्थित है। चालुक्य वंश की एक शाखा के मूलराज प्रथम (942-995ई.) ने गुजरात के एक बड़े भाग को जीतकर अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया था। मूलराज प्रथम ने अपने साम्राज्य का संतोषजनक विस्तार कर लिया था। मूलराज प्रथम ने वृद्धावस्था में अपने पुत्र चामुण्डराय के लिए सिंहासन त्याग दिया था। अन्हिलवाड़ 1025 ई. में महमूद गजनवी के आक्रमण का शिकार हुआ। उस समय यहाँ का शासक भीमदेव प्रथम था। उस वंश का सबसे प्रतापी शासक जयसिंह सिद्धराज (1094-1153ई.) था। प्रसिद्ध जैन आचार्य एवं विद्धान हेमचन्द्र उसके दरबार में था। हेमचन्द्र ने व्याकरण, छन्द, शब्द-शास्त्र, साहित्य कोश, इतिहास दर्शन आदि विभिन्न विषयों पर ग्रंथों की रचना की। कालांतर में 1178 ई. में आबू के निकट अन्हिलवाड़ के शासक मूलराज द्धितीय ने मुहम्मद गौरी को हराया। 1197 ई. में ऐबर ने गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ को लूटा। उस समय भीमदेव द्धितीय यहाँ शासन कर रहा था।
1299 ई. में अलाउद्दीन ख़िलज़ी की सेना ने अन्हिलवाड़ के राजा कर्ण को हराया और उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया। गुजरात तब से लेकर 1401 ई. तक दिल्ली सल्तनत का प्रांत बना रहा। अहमदशाह (1411-1442ई.) ने अन्हिलवाड़ के स्थान पर नयी राजधानी अहमदाबाद बनायी। इसके साथ ही अन्हिलवाड़ (पाटन) के गौरव का सूर्य अस्त हो गया।
अन्हिलवाड़ का नगर व्यापारियों के लिए तीर्थ स्थान के समान था। यह शहर आठवीं सदी से चौदहवीं सदी तक एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र रहा। पूर्व मध्यकाल में अन्हिलवाड़ या अन्हिलपाटन ने शिक्षा के केन्द्र के रूप में पहचान बना ली थी। हिन्दू धर्म- दर्शन के अतिरिक्त जैन धर्म और दर्शन की भी शिक्षा दी जाती थी। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषओं का उत्कर्ष और प्रयास यहाँ हुआ था।
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