ग़यासुद्दीन तुग़लक़: Difference between revisions
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गयासुद्दीन | गयासुद्दीन तुग़लक़ [[दिल्ली]] का सुल्तान (1320-25 ई.) था। उसने [[तुग़लक़ वंश]] की स्थापना की थी। उसका पिता सुल्तान बलबन (1266-86) का तुर्क ग़ुलाम था। सुल्तान ने उसे ग़ुलामी से मुक्त कर दिया था। और उसने एक जाट स्त्री से विवाह किया। उसके लड़के गयासुद्दीन का आरंभिक नाम गाजी मलिक था, जो अपने गुणों और वीरता के कारण सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] (1296-1316 ई.) के द्वारा उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। उसने मंगोलों के आक्रमण से कई बार उत्तर-पश्चिमी सीमा की रक्षा की। [[ख़िलजी वंश]] के अंतिम शासक [[मुबारक]] को मारकर (1320 ई.) गद्दी पर बैठने वाले सरदार ख़ुसरो को भी गयासुद्दीन ने पराजित किया। तदन्तर अमीरों ने गयासुद्दीन को ही गद्दी पर बैठा दिया। उसने तुग़लक़ वंश की स्थापना की। गद्दी पर बैठने के बाद उसने केवल 5 वर्ष शासन किया लेकिन अपने अल्पकालीन शासन में ही दिल्ली के सुल्तानों की सैनिक शक्ति को पुनर्गठित किया। [[वारंगल]] के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव द्वितीय को पराजित किया, और [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] के विद्रोही [[हाकिम गयासुद्दीन बहादुर]] को हराया। इसके अलावा उसने गैरक़ानूनी भूमि अनुदानों को छीन कर, योग्य और ईमानदार हाकिमों को नियुक्त करके, लगान वसूली में मनमानी बंद करके, कृषि को प्रोत्साहित कर, सिंचाई के साधन प्रस्तुत कर, न्याय एवं पुलिस-व्यवस्था में सुधार करके, ग़रीबों के लिए सहायता की व्यवस्था करके, तथा डाक-व्यवस्था को विकसित करके राज्य व्यवस्था को आदर्श रूप दिया। उसने विद्वानों का भी संरक्षण किया, जिनमें [[अमीर ख़ुसरो]] मुख्य था। एक दुर्घटना के कारण गयासुद्दीन के शासन का अंत हो गया, जिसके लिए कुछ इतिहासकारों ने उसके पुत्र जूना ख़ाँ को ही जिम्मेदार बताया है, जो बाद में [[मुहम्मद बिन तुग़लक]] के नाम से गद्दी पर बैठा। | ||
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गयासुद्दीन तुग़लक़ दिल्ली का सुल्तान (1320-25 ई.) था। उसने तुग़लक़ वंश की स्थापना की थी। उसका पिता सुल्तान बलबन (1266-86) का तुर्क ग़ुलाम था। सुल्तान ने उसे ग़ुलामी से मुक्त कर दिया था। और उसने एक जाट स्त्री से विवाह किया। उसके लड़के गयासुद्दीन का आरंभिक नाम गाजी मलिक था, जो अपने गुणों और वीरता के कारण सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316 ई.) के द्वारा उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। उसने मंगोलों के आक्रमण से कई बार उत्तर-पश्चिमी सीमा की रक्षा की। ख़िलजी वंश के अंतिम शासक मुबारक को मारकर (1320 ई.) गद्दी पर बैठने वाले सरदार ख़ुसरो को भी गयासुद्दीन ने पराजित किया। तदन्तर अमीरों ने गयासुद्दीन को ही गद्दी पर बैठा दिया। उसने तुग़लक़ वंश की स्थापना की। गद्दी पर बैठने के बाद उसने केवल 5 वर्ष शासन किया लेकिन अपने अल्पकालीन शासन में ही दिल्ली के सुल्तानों की सैनिक शक्ति को पुनर्गठित किया। वारंगल के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव द्वितीय को पराजित किया, और बंगाल के विद्रोही हाकिम गयासुद्दीन बहादुर को हराया। इसके अलावा उसने गैरक़ानूनी भूमि अनुदानों को छीन कर, योग्य और ईमानदार हाकिमों को नियुक्त करके, लगान वसूली में मनमानी बंद करके, कृषि को प्रोत्साहित कर, सिंचाई के साधन प्रस्तुत कर, न्याय एवं पुलिस-व्यवस्था में सुधार करके, ग़रीबों के लिए सहायता की व्यवस्था करके, तथा डाक-व्यवस्था को विकसित करके राज्य व्यवस्था को आदर्श रूप दिया। उसने विद्वानों का भी संरक्षण किया, जिनमें अमीर ख़ुसरो मुख्य था। एक दुर्घटना के कारण गयासुद्दीन के शासन का अंत हो गया, जिसके लिए कुछ इतिहासकारों ने उसके पुत्र जूना ख़ाँ को ही जिम्मेदार बताया है, जो बाद में मुहम्मद बिन तुग़लक के नाम से गद्दी पर बैठा।