ग़यासुद्दीन तुग़लक़: Difference between revisions

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'''स्थापत्य कला के क्षेत्र में''' ग़यासुद्दीन ने विशेष रूप में रूचि ली। अपने शसन काल में उसने तुग़लक़ाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी।
'''स्थापत्य कला के क्षेत्र में''' ग़यासुद्दीन ने विशेष रूप में रूचि ली। अपने शसन काल में उसने तुग़लक़ाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
'''जब ग़यासुद्दीन तुग़लक़''' [[बंगाल]] अभियान से लौट रहा था, तब लौटते समय तुग़लक़ाबाद से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अफ़ग़ानपुर में उसके लड़के जूना ख़ाँ के निर्देश पर अहमद अयाज द्वारा निर्मित लकड़ी के महल में सुल्तान ग़यासुद्दीन के प्रवेश करते ही महल गिर गया, जिसमें दबकर उसकी मार्च, 1325 ई. को मुत्यृ हो गयी। इस घटना के समय शेख रुकनुद्दीन महल में मौजूद था, जिसे उलूग ख़ाँ ने नमाज़ पढ़ने के बहाने उस स्थान से हटा दिया था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मकबरा तुग़लक़ाबाद में स्थित है।
'''जब ग़यासुद्दीन तुग़लक़''' [[बंगाल]] अभियान से लौट रहा था, तब लौटते समय [[तुग़लक़ाबाद]] से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अफ़ग़ानपुर में एक महल (जिसे उसके लड़के जूना ख़ाँ के निर्देश पर अहमद अयाज ने लकड़ियों से निर्मित करवाया था) में सुल्तान ग़यासुद्दीन के प्रवेश करते ही वह महल गिर गया, जिसमें दबकर उसकी मार्च, 1325 ई. को मुत्यृ हो गयी। इस घटना के समय शेख रुकनुद्दीन महल में मौजूद था, जिसे उलूग ख़ाँ ने नमाज़ पढ़ने के बहाने उस स्थान से हटा दिया था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मकबरा तुग़लक़ाबाद में स्थित है।





Revision as of 10:30, 25 February 2011

[[चित्र:The-Tomb-Of-Ghayasuddin-Tughlak.jpg|thumb|300px|ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा, तुग़लकाबाद]] ग़ाज़ी मलिक या तुग़लक़ ग़ाज़ी, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-1325 ई.) के नाम से 8 सितम्बर, 1320 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। इसने कुल 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था। वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ 'ग़ाज़ी' (काफ़िरों का वध करने वाला) शब्द जोड़ा था।

आर्थिक सुधार

सुल्तान ने आर्थिक सुधार के अन्तर्गत अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती एवं नरमी के मध्य संतुलन (रस्म-ए-मियान) को बनाया। उसने लगान के रूप में उपज का 1/10 या 1/12 हिस्सा ही लेने का आदेश जारी कराया। ग़यासुद्दीन ने मध्यवर्ती ज़मीदारों विशेष रूप से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए, जिससे उनको वही स्थिति प्राप्त हो गयी, जो बलबन के समय में प्राप्त थी। ग़यासुद्दीन ने अमीरों की भूमि पुनः लौटा दी। उसने सिंचाई के लिए कुँए एवं नहरों का निर्माण करवाया। सम्भवतः नहर का निर्माण करवाने वाला ग़यासुद्दीन प्रथम सुल्तान था। अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर नीति के विरुद्ध उसने उदारता की नीति अपनायी, जिसे बरनी ने 'रस्मेमियान' अथवा 'मध्यपंथी नीति' कहा है।

उदार व्यक्ति

ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की डाक व्यवस्था श्रेष्ठ थी। न्याय व्यवस्था के अन्तर्गत ग़यासुद्दीन ने एक न्याय विभाग का निर्माण करवाया। उसमें धार्मिक सहिष्णुता का अभाव था। उसने अलाउद्दीन ख़िलजी द्वारा चलाई गयी दाग़ने तथा चेहरा प्रथा को प्रभावी तरीक़े से लागू किया। वह दानी स्वभाव का होने के साथ जनकल्याणकारी कार्यों को कराने में दिलचस्पी रखता था। बरनी के अनुसार सुल्तान अपने सैनिकों के साथ पुत्रवत व्यवहार करता था। उसकी सेना में गिज, तुर्क, मंगोल, रूमी, ताजिक, खुरासानी, मेवाती एवं दोआब के राजपूत सैनिक शामिल थे। उसकी महत्वपूर्ण विजय निम्नलिखित थीं-

  1. वारंगल व तेलंगाना की विजय (1324 ई.)
  2. तिरहुती विजय, मंगोल विजय (1324 ई.) आदि।

विजय अभियान

तुग़लक़ वंश
शासक काल
ग़यासुद्दीन तुग़लक़ 1320-25 ई.
मुहम्मद बिन तुग़लक़ 1325-57 ई.
फ़िरोज शाह तुग़लक़ 1351 -88 ई.
ग़यासुद्दीन द्वितीय 1389 ई.
अबूबक्र 1389-90 ई.
नासिरुद्दीन महमूद 1390-94 ई.
अलाउद्दीन 1394 ई.
नसरत शाह तुग़लक़ 1395-98 ई.
महमूद तुग़लक 1399-1412 ई.

1321 ई. में ग़यासुद्दीन ने वारंगल पर आक्रमण किया, किन्तु वहाँ के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव को पराजित करने में वह असफल रहा। 1323 ई. में द्वितीय अभियान के अन्तर्गत ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने शाहज़ादे 'जौना ख़ाँ' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) को दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभुत्व की पुन:स्थापना के लिए भेजा। जौना ख़ाँ ने वारंगल के काकतीय एवं मदुरा के पाण्ड्य राज्यों को विजित कर दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया। इस प्रकार सर्वप्रथम ग़यासुद्दीन के समय में ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया। इन राज्यों में सर्वप्रथम वारंगल था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ पूर्णतः साम्राज्यवादी था। इसने अलाउद्दीन ख़िलजी की दक्षिण नीति त्यागकर दक्षिणी राज्यों को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।

ग़यासुद्दीन जब बंगाल में था, तभी सूचना मिली कि, जूना ख़ाँ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) निज़ामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया है और वह उसे राजा होने की भविष्यवाणी कर रहा है। निज़ामुद्दीन औलिया को ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने धमकी दी तो, औलिया ने उत्तर दिया कि, "हुनूज दिल्ली दूर अस्त, अर्थात दिल्ली अभी बहुत दूर है। हिन्दू जनता के प्रति ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की नीति कठोर थी। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ संगीत का घोर विरोधी था। बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ख़िलजी ने शासन स्थापित करने के लिये जहाँ रक्तपात व अत्याचार की नीति अपनाई, वहीं ग़यासुद्दीन ने चार वर्षों में ही उसे बिना किसी कठोरता के संभव बनाया।

राजस्व सुधार

अपनी सत्ता स्थापित करने के बाद ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने अमीरों तथा जनता को प्रोत्साहित किया। शुद्ध रूप से तुर्की मूल का होने के कारण इस कार्य में उसे कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। ग़यासुद्दीन ने कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों के हितों की ओर ध्यान दिया। उसने एक वर्ष में इक्ता के राजस्व में 1/10 से 1/11 भाग से अधिक की वृद्धि नहीं करने का आदेश दिया। उसने सिंचाई के लिए नहरें खुदवायीं तथा बाग़ बनवायें।

सार्वजनिक सुधार

जनता की सुविधा के लिए अपने शासन काल में ग़यासुद्दीन ने क़िलों, पुलों और नहरों का निर्माण कराया। सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय ग़यासुद्दीन तुग़लक़ को ही जाता है। ‘बरनी’ ने डाक-व्यवस्था का विस्तृत वर्णन किया है। शारीरिक यातना द्वारा राजकीय ऋण वसूली को उसने प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन हिन्दू जनता के प्रति उसकी कठोर नीति यथावत बनी रही। उसने हिन्दुओं का धन जमा करने की आज्ञा का निषेध किया।

धार्मिक कार्य

ग़यासुद्दीन एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। इस्लाम धर्म में उसकी गहरी आस्था और उसके सिद्धान्तों का वह सावधानीपूर्वक पालन करता था। उसने मुसलमान जनता पर इस्लाम के नियमों का पालन करने के लिए दबाव डाला। उसने अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता की नीति अपनाई थी।

निर्माण कार्य

स्थापत्य कला के क्षेत्र में ग़यासुद्दीन ने विशेष रूप में रूचि ली। अपने शसन काल में उसने तुग़लक़ाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी।

मृत्यु

जब ग़यासुद्दीन तुग़लक़ बंगाल अभियान से लौट रहा था, तब लौटते समय तुग़लक़ाबाद से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अफ़ग़ानपुर में एक महल (जिसे उसके लड़के जूना ख़ाँ के निर्देश पर अहमद अयाज ने लकड़ियों से निर्मित करवाया था) में सुल्तान ग़यासुद्दीन के प्रवेश करते ही वह महल गिर गया, जिसमें दबकर उसकी मार्च, 1325 ई. को मुत्यृ हो गयी। इस घटना के समय शेख रुकनुद्दीन महल में मौजूद था, जिसे उलूग ख़ाँ ने नमाज़ पढ़ने के बहाने उस स्थान से हटा दिया था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मकबरा तुग़लक़ाबाद में स्थित है।


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