कोटि तीर्थ मथुरा: Difference between revisions
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*यह [[यमुना नदी]] के किनारे एक घाट है। | |||
*यहाँ स्नान करने से मनुष्य कोटि–कोटि गोदान का फल प्राप्त करता है । पास ही में गोकर्ण तीर्थ है । | *यहाँ स्नान करने से मनुष्य कोटि–कोटि गोदान का फल प्राप्त करता है । पास ही में गोकर्ण तीर्थ है । | ||
*प्रसिद्ध [[गोकर्ण]] ने अपने भाई धुंधुकारी को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उसका प्रेमयोनि से उद्धार किया था । | *प्रसिद्ध [[गोकर्ण]] ने अपने भाई धुंधुकारी को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उसका प्रेमयोनि से उद्धार किया था । | ||
*उन्हीं गोकर्ण की भगवद् आराधना का यह स्थल है । | *उन्हीं गोकर्ण की भगवद् आराधना का यह स्थल है । | ||
<blockquote>तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् । | <blockquote><poem>तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् । | ||
तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।< | तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।। | ||
चक्रतीर्थं तु विख्यातं माथुरे मम मण्डले । | |||
यस्तत्र कुरुते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: । | |||
स्नानमात्रेण मनुजो मुख्यते ब्रह्महत्यया ।।</poem></blockquote> | |||
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Revision as of 14:09, 25 May 2011
- भारत के उत्तर प्रदेश प्रदेश में मथुरा, जो भारत की राजधानी दिल्ली और आगरा जाने वाली सड़क पर (आगरा से लगभग 65 कि.मी. पहले) स्थित है। वृन्दावन मथुरा से होकर पहुँचा जा सकता है। मथुरा कृष्ण की जन्म भूमि है। मथुरा नगरी इस महान विभूति का जन्मस्थान होने के कारण धन्य हो गई। मथुरा ही नहीं, सारा शूरसेन या ब्रज जनपद आनंदकंद कृष्ण की मनोहर लीलाओं की क्रीड़ाभूमि होने के कारण गौरवान्वित हो गया। मथुरा और ब्रज को कालांतर में जो असाधारण महत्त्व प्राप्त हुआ वह इस महापुरुष की जन्मभूमि और क्रीड़ाभूमि होने के कारण ही श्रीकृष्ण भागवत धर्म के महान स्त्रोत हुए। इस धर्म ने कोटि-कोटि भारतीय जन का अनुरंजन तो किया ही,साथ ही कितने ही विदेशी इसके द्वारा प्रभावित हुए। प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोहर लीलाओं से ओत-प्रोत है। उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटली पर जो छाप लगा दी है, वह अमिट है।
- यह यमुना नदी के किनारे एक घाट है।
- यहाँ स्नान करने से मनुष्य कोटि–कोटि गोदान का फल प्राप्त करता है । पास ही में गोकर्ण तीर्थ है ।
- प्रसिद्ध गोकर्ण ने अपने भाई धुंधुकारी को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उसका प्रेमयोनि से उद्धार किया था ।
- उन्हीं गोकर्ण की भगवद् आराधना का यह स्थल है ।
तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् ।
तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।
चक्रतीर्थं तु विख्यातं माथुरे मम मण्डले ।
यस्तत्र कुरुते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: ।
स्नानमात्रेण मनुजो मुख्यते ब्रह्महत्यया ।।