अष्टसखी कुंज वृन्दावन: Difference between revisions

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*[[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] प्रदेश में [[मथुरा]], जो भारत की राजधानी [[दिल्ली]] और [[आगरा]] जाने वाली सड़क पर (आगरा से लगभग 65 कि.मी. पहले) स्थित है। [[वृन्दावन]]  मथुरा से होकर पहुँचा जा सकता है। मथुरा [[कृष्ण]] की जन्म भूमि है। [[मथुरा]] नगरी इस महान विभूति का [[कृष्ण जन्मभूमि|जन्मस्थान]] होने के कारण धन्य हो गई। मथुरा ही नहीं, सारा शूरसेन या ब्रज जनपद आनंदकंद कृष्ण की मनोहर लीलाओं की क्रीड़ाभूमि होने के कारण गौरवान्वित हो गया। मथुरा और ब्रज को कालांतर में जो असाधारण महत्त्व प्राप्त हुआ वह इस महापुरुष की जन्मभूमि और क्रीड़ाभूमि होने के कारण ही श्रीकृष्ण भागवत धर्म के महान स्रोत हुए। इस धर्म ने कोटि-कोटि भारतीय जन का अनुरंजन तो किया ही,साथ ही कितने ही विदेशी इसके द्वारा प्रभावित हुए। प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोहर लीलाओं से ओत-प्रोत है। उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटली पर जो छाप लगा दी है, वह अमिट है।   
*[[मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन|श्री मदन मोहन जी]] के पुराने मन्दिर के पास में अष्टसखी का कुंज स्थित है।   
*[[मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन|श्री मदन मोहन जी]] के पुराने मन्दिर के पास में अष्टसखी का कुंज स्थित है।   
*हेतमपुर के महाराज ने इसका निर्माण किया था।   
*हेतमपुर के महाराज ने इसका निर्माण किया था।   

Revision as of 13:23, 12 July 2011

  • भारत के उत्तर प्रदेश प्रदेश में मथुरा, जो भारत की राजधानी दिल्ली और आगरा जाने वाली सड़क पर (आगरा से लगभग 65 कि.मी. पहले) स्थित है। वृन्दावन मथुरा से होकर पहुँचा जा सकता है। मथुरा कृष्ण की जन्म भूमि है। मथुरा नगरी इस महान विभूति का जन्मस्थान होने के कारण धन्य हो गई। मथुरा ही नहीं, सारा शूरसेन या ब्रज जनपद आनंदकंद कृष्ण की मनोहर लीलाओं की क्रीड़ाभूमि होने के कारण गौरवान्वित हो गया। मथुरा और ब्रज को कालांतर में जो असाधारण महत्त्व प्राप्त हुआ वह इस महापुरुष की जन्मभूमि और क्रीड़ाभूमि होने के कारण ही श्रीकृष्ण भागवत धर्म के महान स्रोत हुए। इस धर्म ने कोटि-कोटि भारतीय जन का अनुरंजन तो किया ही,साथ ही कितने ही विदेशी इसके द्वारा प्रभावित हुए। प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोहर लीलाओं से ओत-प्रोत है। उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटली पर जो छाप लगा दी है, वह अमिट है।
  • श्री मदन मोहन जी के पुराने मन्दिर के पास में अष्टसखी का कुंज स्थित है।
  • हेतमपुर के महाराज ने इसका निर्माण किया था।
  • बीच में श्री राधा - कृष्ण युगलस्वरूप तथा इनकी दोनों ओर चार-चार सखियों के विग्रह हैं।
  • सन 1216 ई. में हेतमपुर के महाराजा रामरंजन चक्रवर्ती तथा उनकी पत्नी पद्मासुन्दरी ने इस मन्दिर का निर्माणकर श्री राधारासबिहारी विग्रह को पधराया था।

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