सर जॉर्ज बार्लो: Difference between revisions

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*'''सर जॉर्ज बार्लो''' 1805 से 1807 ई. तक [[भारत]] के [[गवर्नर-जनरल]] रहे।
*[[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की सेवा के लिए उनका यह कार्यकाल काफ़ी अल्प था।
*[[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की सेवा के लिए उनका यह कार्यकाल काफ़ी अल्प था।

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thumb|200px|सर जॉर्ज बार्लो

  • सर जॉर्ज बार्लो 1805 से 1807 ई. तक भारत के गवर्नर-जनरल रहे।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा के लिए उनका यह कार्यकाल काफ़ी अल्प था।
  • लॉर्ड वेलेज़ली (1798-1805 ई.) के प्रशासनकाल में पदोन्नति करके वह कौंसिल के सदस्य बन गये थे।
  • अक्टूबर 1805 ई. में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस की मृत्यु के समय उन्हें कौंसिल का वरिष्ठ सदस्य होने के नाते कार्यकारी गवर्नर-जनरल नियुक्त कर दिया गया।
  • गवर्नर-जनरल के इस पद पर वह 1807 ई. तक बने रहे थे।
  • वह अपने पूर्वाधिकारी लॉर्ड कॉर्नवॉलिस द्वारा अपनाई गई अहस्तक्षेप की नीति के अनुगामी बने रहे।
  • इसके परिणाम स्वरूप उन्होंने राजपूत राजाओं और मराठों को दया पर छोड़ दिया, जिन्होंने राजपूताना पर आक्रमण कर मनमानी लूट-ख़सोट की थी।
  • इससे अंग्रेज़ सरकार की प्रतिष्ठा बहुत गिर गई। उनके प्रशासन काल में वेल्लोर में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया, जिसे सख़्ती से दबा दिया गया।
  • उनकी अहस्तक्षेप की नीति से ख़र्च में कमी हुई और वार्षिक बचत होने लगी।
  • इससे कम्पनी के डाइरेक्टर्स ख़ुश हुए, किन्तु उनकी दुर्बल नीतियों से भारत तथा इंग्लैंण्ड के अंग्रेज़ इतने नाराज़ हुए कि, गवर्नर-जनरल के पद पर उनकी नियुक्ति की पुष्टि नहीं की गई और लॉर्ड मिण्टो प्रथम को उनके स्थान पर भेज दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 284।

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