खुशवंत सिंह: Difference between revisions

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1947 से कुछ वर्षों तक उन्होंने [[भारत]] के विदेश मंत्रालय में विदेश सेवा के महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। 1980 से 1986 तक वे [[राज्य सभा]] के मनोनीत सदस्य रहे।
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खुशवंत सिंह को अनेक पुरस्कार मिले हैं। 2000 ई. में उनको 'वर्ष का ईमानदार व्यक्ति' सम्मान मिला था। 1974 में [[राष्ट्रपति]] ने उन्हें '[[पद्म भूषण]]' के अलंकरण से सम्मानित किया जो [[अमृतसर]] के [[स्वर्ण मंदिर]] में केन्द्र सरकार की कार्रवाई के विरोध में उन्होंने 1984 में लौटा दिया था। 2007 में इन्हें '[[पद्म विभूषण]]' से भी समानित किया गया है। उनका लेखन कार्य अब भी जारी है।
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thumb|खुशवंत सिंह

खुशवंत सिंह एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक , उपन्यासकार और इतिहासकार हैं।

जन्म और शिक्षा

खुशवंत सिंह का जन्म 1915 ई. में पंजाब के हदाली नामक स्थान (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में शिक्षा पाई तथा लंदन से ही कानून की डिग्री ली। उसके बाद तक लाहौर में वकालत करते रहे।

पत्रकार के रूप में

खुशवंत सिंह प्रसिद्ध पत्रकार हैं और इस क्षेत्र में उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की। 1951 में वे आकाशवाणी से संबद्ध थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र 'योजना' का संपादन किया। मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अग्रेज़ी साप्ताहिक 'इल्लस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' के और 'न्यू डेल्ही' के संपादक वे 1980 तक थे। 1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक भी वही थी। तभी से वे प्रति सप्ताह एक लोकप्रिय 'कॉलम' लिखते हैं जो अनेक भाषाओं के दैनिक पत्रों में प्रकाशित होता है।

प्रसिद्ध उपन्यासकार

खुशवंत सिंह उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात हैं। उनके अनेक उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं- 'डेल्ही', 'ट्रेन टु पाकिस्तान', 'दि कंपनी ऑफ़ वूमन' आदि। वर्तमान संदर्भों तथा प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएँ हैं। दो खंडों में प्रकाशित सिक्खों का इतिहास उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। साहित्य के क्षेत्र में पिछले सत्तर वर्ष में खुशवंत सिंह का विविध आयामी योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पद

1947 से कुछ वर्षों तक उन्होंने भारत के विदेश मंत्रालय में विदेश सेवा के महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। 1980 से 1986 तक वे राज्य सभा के मनोनीत सदस्य रहे।

पुरस्कार

खुशवंत सिंह को अनेक पुरस्कार मिले हैं। 2000 ई. में उनको 'वर्ष का ईमानदार व्यक्ति' सम्मान मिला था। 1974 में राष्ट्रपति ने उन्हें 'पद्म भूषण' के अलंकरण से सम्मानित किया जो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में केन्द्र सरकार की कार्रवाई के विरोध में उन्होंने 1984 में लौटा दिया था। 2007 में इन्हें 'पद्म विभूषण' से भी सम्मानित किया गया है। उनका लेखन कार्य अब भी जारी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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