स्वामी करपात्री: Difference between revisions

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धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एक प्रख्यात [[भारतीय]] [[संत]],सन्यासी [[राजनेता]] थे।धर्मसंघ व अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक पार्टी के संस्थापक महामहिम स्वामी करपात्री को "हिंदु धर्म सम्राट" की उपाधि मिली।स्वामी करपात्री एक सच्चे स्वदेशप्रेमी व [[हिन्दु]] [[धर्म]] प्रवर्तक थे।
धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एक प्रख्यात [[भारतीय]] [[संत]],सन्यासी [[राजनेता]] थे।धर्मसंघ व अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक पार्टी के संस्थापक महामहिम स्वामी करपात्री को "हिंदु धर्म सम्राट" की उपाधि मिली।स्वामी करपात्री एक सच्चे स्वदेशप्रेमी व [[हिन्दु]] [[धर्म]] प्रवर्तक थे।


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स्वामी श्री ८ - ९ वर्ष की आयु से ही सत्य की खोज हेतु घर से पलायन करते रहे | वस्तुतः ९ वर्ष की आयु में सौभाग्यवती कुमारी महादेवी जी के साथ विवाह संपन्न होने के पशचात १६ वर्ष की अल्पायु में गृहत्याग कर दिया | उसी वर्ष स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ली| हरि नारायण से ' हरिहर चैतन्य ' बने|
स्वामी श्री ८ - ९ वर्ष की आयु से ही सत्य की खोज हेतु घर से पलायन करते रहे | वस्तुतः ९ वर्ष की आयु में सौभाग्यवती कुमारी महादेवी जी के साथ विवाह संपन्न होने के पशचात १६ वर्ष की अल्पायु में गृहत्याग कर दिया | उसी वर्ष स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ली| हरि नारायण से ' हरिहर चैतन्य ' बने|


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==संबंधित लेख==
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Revision as of 12:49, 9 May 2012

250px|thumb|right|स्वामी करपात्री धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एक प्रख्यात भारतीय संत,सन्यासी राजनेता थे।धर्मसंघ व अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक पार्टी के संस्थापक महामहिम स्वामी करपात्री को "हिंदु धर्म सम्राट" की उपाधि मिली।स्वामी करपात्री एक सच्चे स्वदेशप्रेमी व हिन्दु धर्म प्रवर्तक थे।

जन्म

स्वामी श्री का जन्म संवत् १९६४ विक्रमी ( सन् १९०७ ईस्वी ) में श्रावन मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीया को ग्राम भटनी, जिला प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में सनातनधर्मी सरयूपारीण ब्राह्मण स्व० श्री रामनिधि ओझा एवं परमधार्मिक सुसंस्क्रिता स्व० श्रीमती शिवरानी जी के आँगन में हुआ|बचपन में उनका नाम 'हरि नारायण' रखा गया|

बचपन

250px|thumb|right|स्वामी करपात्री स्वामी श्री ८ - ९ वर्ष की आयु से ही सत्य की खोज हेतु घर से पलायन करते रहे | वस्तुतः ९ वर्ष की आयु में सौभाग्यवती कुमारी महादेवी जी के साथ विवाह संपन्न होने के पशचात १६ वर्ष की अल्पायु में गृहत्याग कर दिया | उसी वर्ष स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ली| हरि नारायण से ' हरिहर चैतन्य ' बने|

शिक्षा

नैष्ठिक ब्रह्म्चारिय पंडित श्री जीवन दत्त महाराज जी से संस्क्रिताध्याय्न षड्दर्शनाचार्य पंडित स्वामी श्री विश्वेश्वराश्रम जी महाराज से व्याकरण शास्त्र, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, वेदांत अध्ययन, श्री अचुत्मुनी जी महाराज से अध्ययन ग्रहण किया|

तपो जीवन

१७ वर्ष की आयु से हिमालय गमन प्रारंभ कर अखंड साधना, आत्मदर्शन,धर्म सेवा का संकल्प लिया| काशी धाम में शिखासूत्र परित्याग के बाद विद्वत, सन्यास प्राप्त किया|एक ढाई गज कपरा एवं दो लंगोटी मात्र रखकर भयंकर शीतोष्ण वर्षा का सहन करना इनका १८ वर्ष की आयु में ही स्वभाव बन गया था| त्रिकाल स्नान, ध्यान, भजन, पूजन, तो चलता ही था| विद्याधययन की गति इतनी तीव्र थी की संपूर्ण वर्ष का पाठ्यक्रम घंटों और दिनों में हृदयंगमकर लेते| गंगातट पर फूंस की झोंपरी में एकाकी निवास, करों में भिक्षाग्रहण करनी, चौबीस घंटों में एक बार| भूमिसयन, निरावण चरण (पद) यात्रा| गंगातट नखर में प्रत्येक प्रतिपदा को धूप में एक लकड़ी की किल गाड कर एक टांग से खड़े होकर तपस्या रत रहते| चौबीस घंटे ब्यतीत होने पर जब सूर्य की धुप से कील की छाया उसी स्थान पर पड़ती, जहाँ २४ घंटे पूर्व थी, तब दुसरे पैर का आसन बदलते| ऐसी कठोर साधना की किशोर - हर नारायण ने - करों में भिक्षा के कारन "करपात्री" कहलाए|

दण्ड ग्रहण

२४ वर्ष की आयु में परम तपस्वी १००८ श्री स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से बिधिवत दण्ड ग्रहण कर "अभिनवशंकर" के रूप में प्राकट्य हुआ| एक सुन्दर आश्रम की संरचना कर पूर्ण रूप से सन्यासी बन कर "परमहंस परिब्राजकाचार्य १००८ श्री स्वामी हरिहरानंद सरस्वती श्री करपात्री जी महाराज" कहलाए|

अखिल भारतीय राम राज्य परिषद

अखिल भारतीय राम राज्य परिषद भारत की एक परम्परावादी हिन्दू पार्टी थी। इसकी स्थापना स्वामी करपात्री ने सन् १९४८ में की थी। इस दल ने सन् १९५२ के प्रथम लोकसभा चुनाव में ३ सीटें प्राप्त की थी। सन् १९५२, १९५७ एवम् १९६२ के विधान सभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान)में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थी।

धर्मसंघ कि स्थापना

सम्पूर्ण देश में पैदल यात्राएँ करते धर्म प्रचार के लिए सन १९४० ई० में "अखिल भारतीए धर्म संघ" की स्थापना की जिसका दायरा संकुचित नहीं किन्तु वह आज भी प्राणी मात्र में सुख शांति के लिए प्रयत्नशील हैं| उसकी दृष्टि में समस्त जगत और उसके प्राणी सर्वेश्वर, सर्वोधिश्थान भगवान के अंश हैं या रूप हैं| उसके सिद्धांत में अधार्मिकों का नहीं अधर्म का नाश को ही प्राथमिकता दी गई है | यदि मनुष्य स्वयं शांत और सुखी रहना चाहता है तो औरों को भी शांत और सुखी बनाने का प्रयत्न आवश्यक है| इसलिए धर्म संघ के हर कार्य को आदि अंत में धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो ऐसे पवित्र जयकारों का प्रयोग होना चाहिए| यदि सब एक संकल्प से भगवान की प्रार्थना करेंगे तो अवश्य ही सब संकट मिट जाएँगे| इससे सद्भावना, संघटन, सामंजस्य बढेगा और फिर राष्ट्रीय, अन्तराष्ट्रीय तथा समस्त विश्व का कल्याण होगा|


मृत्यु

माघ शुक्ल चतुर्दशी स० २०३८ (७ फरवरी १९८२) को केदारघाट वाराणसी में स्वईच्छा से उनके पंचप्राण महाप्राण में विलीन हो गए| उनके निर्देशानुसार उनके नश्वर पार्थिव शरीर का केदारघाट स्थित श्री गंगा महारानी को पावन गोद में जल समाधी दी गई|



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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