तारागढ़ का क़िला अजमेर: Difference between revisions

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[[राजस्थान]] के गिरी दुर्गों में [[अजमेर]] के तारागढ़ का क़िला का एक ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। अजमेर शहर के दक्षिण-पश्चिम में [[अढाई दिन का झोपडा अजमेर|ढाई दिन के झौंपडे]] के पीछे स्थित यह दुर्ग तारागढ की पहाडी पर 700 फीट की ऊँचाई पर स्थित हैं।  
[[राजस्थान]] के गिरी दुर्गों में [[अजमेर]] के तारागढ़ का क़िला का एक ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। अजमेर शहर के दक्षिण-पश्चिम में [[अढाई दिन का झोपडा अजमेर|ढाई दिन के झौंपडे]] के पीछे स्थित यह दुर्ग तारागढ की पहाडी पर 700 फीट की ऊँचाई पर स्थित हैं।  
==निर्माण काल==
==निर्माण काल==
इस क़िले का निर्माण 11वीं [[सदी]] में सम्राट [[अजय पाल चौहान]] ने मुग़लों के आक्रमणों से रक्षा हेतु करवाया था। तारागढ़ क़िला दरगाह के पीछे की पहाड़ी पर स्थित है। पहले यह क़िला अजयभेरू के नाम से प्रसिद्ध था। [[मुग़ल काल]] में यह क़िला सामरिक दृष्टिकोण से काफ़ी महत्त्वपूर्ण था मगर अब यह सिर्फ़ नाम का क़िला ही रह गया है। यहाँ सिर्फ़ जर्जर बुर्ज, दरवाजे और खँडहर ही शेष बचे हैं।  
इस क़िले का निर्माण 11वीं [[सदी]] में सम्राट [[अजय पाल चौहान]] ने मुग़लों के आक्रमणों से रक्षा हेतु करवाया था। तारागढ़ क़िला दरगाह के पीछे की पहाड़ी पर स्थित है। पहले यह क़िला अजयभेरू के नाम से प्रसिद्ध था। [[मुग़ल काल]] में यह क़िला सामरिक दृष्टिकोण से काफ़ी महत्त्वपूर्ण था मगर अब यह सिर्फ़ नाम का क़िला ही रह गया है। यहाँ सिर्फ़ जर्जर बुर्ज, दरवाज़े और खँडहर ही शेष बचे हैं।  
==विशेषता==
==विशेषता==
क़िले में एक प्रसिद्ध दरगाह और 7 पानी के झालरे भी बने हुए हैं। ब्रिटिश काल में इसका उपयोग चिकित्सालय के रूप में किया गया। कर्नल ब्रोटन के अनुसार बिजोलिया शिलालेख (1170 ईस्वी) में इसे एक अजेय गिरी दुर्ग बताया गया हैं। लोक संगीत में इस क़िले को गढबीरली भी कहा गया हैं। तारागढ़ क़िला जिस पहाडी पर स्थित हैं उसे बीरली कहा जाता हैं इसलिये भी इसे लोग गढबीरली कहते हैं। यहाँ एक मीठे [[नीम]] का पेड़ भी है। कहा जाता है कि जिन लोगों को संतान नहीं होती यदि वो इसका [[फल]] खा लें तो उनकी यह तमन्ना पूरी हो जाती है।
क़िले में एक प्रसिद्ध दरगाह और 7 पानी के झालरे भी बने हुए हैं। ब्रिटिश काल में इसका उपयोग चिकित्सालय के रूप में किया गया। कर्नल ब्रोटन के अनुसार बिजोलिया शिलालेख (1170 ईस्वी) में इसे एक अजेय गिरी दुर्ग बताया गया हैं। लोक संगीत में इस क़िले को गढबीरली भी कहा गया हैं। तारागढ़ क़िला जिस पहाडी पर स्थित हैं उसे बीरली कहा जाता हैं इसलिये भी इसे लोग गढबीरली कहते हैं। यहाँ एक मीठे [[नीम]] का पेड़ भी है। कहा जाता है कि जिन लोगों को संतान नहीं होती यदि वो इसका [[फल]] खा लें तो उनकी यह तमन्ना पूरी हो जाती है।

Revision as of 05:25, 10 December 2012

[[चित्र:Taragarh-Fort.jpg|thumb|250px|तारागढ़ क़िले की दीवार, अजमेर]] राजस्थान के गिरी दुर्गों में अजमेर के तारागढ़ का क़िला का एक ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। अजमेर शहर के दक्षिण-पश्चिम में ढाई दिन के झौंपडे के पीछे स्थित यह दुर्ग तारागढ की पहाडी पर 700 फीट की ऊँचाई पर स्थित हैं।

निर्माण काल

इस क़िले का निर्माण 11वीं सदी में सम्राट अजय पाल चौहान ने मुग़लों के आक्रमणों से रक्षा हेतु करवाया था। तारागढ़ क़िला दरगाह के पीछे की पहाड़ी पर स्थित है। पहले यह क़िला अजयभेरू के नाम से प्रसिद्ध था। मुग़ल काल में यह क़िला सामरिक दृष्टिकोण से काफ़ी महत्त्वपूर्ण था मगर अब यह सिर्फ़ नाम का क़िला ही रह गया है। यहाँ सिर्फ़ जर्जर बुर्ज, दरवाज़े और खँडहर ही शेष बचे हैं।

विशेषता

क़िले में एक प्रसिद्ध दरगाह और 7 पानी के झालरे भी बने हुए हैं। ब्रिटिश काल में इसका उपयोग चिकित्सालय के रूप में किया गया। कर्नल ब्रोटन के अनुसार बिजोलिया शिलालेख (1170 ईस्वी) में इसे एक अजेय गिरी दुर्ग बताया गया हैं। लोक संगीत में इस क़िले को गढबीरली भी कहा गया हैं। तारागढ़ क़िला जिस पहाडी पर स्थित हैं उसे बीरली कहा जाता हैं इसलिये भी इसे लोग गढबीरली कहते हैं। यहाँ एक मीठे नीम का पेड़ भी है। कहा जाता है कि जिन लोगों को संतान नहीं होती यदि वो इसका फल खा लें तो उनकी यह तमन्ना पूरी हो जाती है।

जीर्णोद्धार

12 वीं शताब्दी ईस्वी में शाहजहाँ के एक सेनापति गौड राजपूत राजा बिट्ठलदास ने इस क़िले का जीर्णोद्धार करवाया था, इसलिये भी कई लोग इसका संबंध गढबीरली से जोड़ते हैं।


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