इरावती नदी: Difference between revisions

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'''इरावती''' [[पंजाब]] की प्रसिद्ध [[रावी नदी|नदी रावी]] है। रावी इरावती का ही अपभ्रंश है। इरावती का वैदिक नाम परुष्णी था। 'इरा' का अर्थ मदिरा या स्वादिष्ट पेय है। [[महाभाष्य]] 2,1,2 में इरावती का उल्लेख है। [[भीष्म पर्व महाभारत|महाभारत भीष्म पर्व]] 9,16 में इसको वितस्ता और अन्य नदियों के साथ परिगणित किया गया है-
'''इरावती''' [[पंजाब]] की प्रसिद्ध [[रावी नदी|नदी रावी]] है। रावी इरावती का ही अपभ्रंश है। इरावती का वैदिक नाम परुष्णी था। 'इरा' का अर्थ मदिरा या स्वादिष्ट पेय है। [[महाभाष्य]] 2,1,2 में इरावती का उल्लेख है। [[महाभारत]], भीष्मपर्व 9,16 में इसको [[वितस्ता नदी|वितस्ता]] और अन्य नदियों के साथ परिगणित किया गया है-
:'इरावतीं वितस्तां च पयोष्णीं देवकामपि'।
:'इरावतीं वितस्तां च पयोष्णीं देवकामपि'।
[[सभा पर्व महाभारत]] 9,19 में भी इसी प्रकार उल्लेख है-  
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Revision as of 12:12, 2 November 2014

इरावती पंजाब की प्रसिद्ध नदी रावी है। रावी इरावती का ही अपभ्रंश है। इरावती का वैदिक नाम परुष्णी था। 'इरा' का अर्थ मदिरा या स्वादिष्ट पेय है। महाभाष्य 2,1,2 में इरावती का उल्लेख है। महाभारत, भीष्मपर्व 9,16 में इसको वितस्ता और अन्य नदियों के साथ परिगणित किया गया है-

'इरावतीं वितस्तां च पयोष्णीं देवकामपि'।

सभा पर्व महाभारत 9,19 में भी इसी प्रकार उल्लेख है-

'इरावती वितस्ता च सिंधुर्देवनदी तथा।'

ग्रीक लेखकों ने इरावती को हियारावटाज लिखा है।

इरावती पूर्व उत्तर प्रदेश की राप्ती का भी प्राचीन नाम इरावती था।

ऐतिहासिक उल्लेख

यह नदी कुशीनगर के निकट बहती थी जैसा कि बुद्धचरित 25, 53 के उल्लेख से सूचित होता है- 'इस तरह कुशीनगर आते समय चुंद के साथ तथागत ने इरावती नदी पार की और स्वयं उस नगर के एक उपवन में ठहरे जहाँ कमलों से सुशोभित एक प्रशान्त सरोवर स्थित था'। अचिरावती या अजिरावती इरावती के वैकल्पिक रूप हो सकते हैं। बुद्धचरित के चीनी-अनुवाद में इस नदी के लिए कुकु शब्द है जो पाली के कुकुत्था का चीनी रूप है। बुद्धचरित 25, 54 में वर्णन है कि निर्वाण के पूर्व गौतम बुद्ध ने हिरण्यवती नदी में स्थान किया था जो कुशीनगर के उपवन के समीप बहती थी। यह इरावती या राप्ती की ही एक शाखा जान पड़ती है। स्मिथ के विचार में यह गंडक है जो ठीक नहीं जान पड़ता। बुद्धचरित 27, 70 के अनुसार बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् मल्लों ने उनके शरीर के दाहसंस्कार के लिए हिरण्यवती नदी को पार करके मुकुटचैत्य[1] के नीचे चिता बनाई थी। संभव है महाभारत सभा 9, 22 का 'वारवत्या' भी राप्ती ही हो।

ब्रह्मदेश की इरावदी

इरावदी नाम प्राचीन भारतीय औपनिवेशिकों का दिया हुआ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देखें मृकुटचैत्यवंधन

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