तिगवा: Difference between revisions

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मंदिर का वर्णन करते हुए स्वर्गीय डॉक्टर हीरालाल ने लिखा है कि "यह प्राय: डेढ़ हज़ार वर्ष प्राचीन है।" यह चपटी छतवाला पत्थर का मंदिर है। इसके गर्भगृह में [[नृसिंह अवतार|नृसिंह]] की मूर्ति रखी हुई है। दरवाज़े की चौखट के ऊपर [[गंगा]] और [[यमुना]] की मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। पहले ये ऊपर बनाई जाती थीं किन्तु पीछे से देहरी के निकट बनाई जाने लगीं। मंदिर के मंडप की दीवार में दशभुजी चंडी की मूर्ति खुदी है। उसके नीचे शेषशायी भगवान [[विष्णु]] की प्रतिमा उत्कीर्ण है, जिनकी नाभि से निकले हुए [[कमल]] पर [[ब्रह्मा]] विराजमान हैं।
मंदिर का वर्णन करते हुए स्वर्गीय डॉक्टर हीरालाल ने लिखा है कि "यह प्राय: डेढ़ हज़ार वर्ष प्राचीन है।" यह चपटी छतवाला पत्थर का मंदिर है। इसके गर्भगृह में [[नृसिंह अवतार|नृसिंह]] की मूर्ति रखी हुई है। दरवाज़े की चौखट के ऊपर [[गंगा]] और [[यमुना]] की मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। पहले ये ऊपर बनाई जाती थीं किन्तु पीछे से देहरी के निकट बनाई जाने लगीं। मंदिर के मंडप की दीवार में दशभुजी चंडी की मूर्ति खुदी है। उसके नीचे शेषशायी भगवान [[विष्णु]] की प्रतिमा उत्कीर्ण है, जिनकी नाभि से निकले हुए [[कमल]] पर [[ब्रह्मा]] विराजमान हैं।


श्री राखालदास बनर्जी के अनुसार इस मंदिर में एक वर्गाकार केन्द्रीय गर्भगृह है, जिसके सामने एक छोटा-सा मंडप है। मंडप के स्तम्भों के शीर्ष भारत-पर्सिपोलिस शैली में बने हुए हैं, जिससे यह मंदिर [[गुप्त काल]] से पूर्व का जान पड़ता है।
[[राखालदास बंद्योपाध्याय|श्री राखालदास बनर्जी]] के अनुसार इस मंदिर में एक वर्गाकार केन्द्रीय गर्भगृह है, जिसके सामने एक छोटा-सा मंडप है। मंडप के स्तम्भों के शीर्ष भारत-पर्सिपोलिस शैली में बने हुए हैं, जिससे यह मंदिर [[गुप्त काल]] से पूर्व का जान पड़ता है।


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तिगवा एक छोटा-सा गाँव है, जो मध्य प्रदेश के जबलपुर ज़िले से लगभग 40 मील दूर स्थित है। यह कभी मन्दिरों का गाँव था, किंतु अब यहाँ लगभग सभी मन्दिर नष्ट हो गये हैं। तिगवां में पत्थर का बना विष्णु मन्दिर 12 फुट तथा 9 इंच वर्गाकार है। ऊपर सपाट छत है। इसका गर्भगृह आठ फुट व्यास का है। उसके समक्ष एक मण्डप है। इसके स्तम्भों के ऊपर सिंह तथा कलश की आकृतियाँ हैं। इस मन्दिर में काष्ठ शिल्पाकृतियों के उपकरण का पत्थर में अनुकरण, वास्तुशिल्प की शैशवावस्था की ओर संकेत करता है।

जैन संस्कृति का केन्द्र

तिगवां गुप्त काल में जैन सम्प्रदाय का केन्द्र था। एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि कन्नौज से आए हुए एक जैन यात्री 'उभदेव' ने पार्श्वनाथ का एक मंदिर इस स्थान पर बनवाया था, जिसके अवशेष अभी तक यहाँ पर विद्यमान हैं। यह मंदिर अब हिन्दू मंदिर के समान दिखाई देता है। यहाँ के खंडहरों में कई जैन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई है।

मंदिर का वर्णन

मंदिर का वर्णन करते हुए स्वर्गीय डॉक्टर हीरालाल ने लिखा है कि "यह प्राय: डेढ़ हज़ार वर्ष प्राचीन है।" यह चपटी छतवाला पत्थर का मंदिर है। इसके गर्भगृह में नृसिंह की मूर्ति रखी हुई है। दरवाज़े की चौखट के ऊपर गंगा और यमुना की मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। पहले ये ऊपर बनाई जाती थीं किन्तु पीछे से देहरी के निकट बनाई जाने लगीं। मंदिर के मंडप की दीवार में दशभुजी चंडी की मूर्ति खुदी है। उसके नीचे शेषशायी भगवान विष्णु की प्रतिमा उत्कीर्ण है, जिनकी नाभि से निकले हुए कमल पर ब्रह्मा विराजमान हैं।

श्री राखालदास बनर्जी के अनुसार इस मंदिर में एक वर्गाकार केन्द्रीय गर्भगृह है, जिसके सामने एक छोटा-सा मंडप है। मंडप के स्तम्भों के शीर्ष भारत-पर्सिपोलिस शैली में बने हुए हैं, जिससे यह मंदिर गुप्त काल से पूर्व का जान पड़ता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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