गंभीरा नदी: Difference between revisions

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*यहाँ कालिदास ने गंभीरा के जल को प्रसन्न अथवा निर्मल एवं हर्ष प्रदान करने वाला बताया है। अगले छन्द 33 में<ref>'ह्रत्वा नीलं सलिल वसनम्'</ref> गंभीरा के जल को नीला कहा गया है।<ref>'तस्या: किंचित् करधृतमिव प्राप्तवानीरशाखं, ह्रत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधो नितम्बम्'</ref>  
*यहाँ कालिदास ने गंभीरा के जल को प्रसन्न अथवा निर्मल एवं हर्ष प्रदान करने वाला बताया है। अगले छन्द 33 में<ref>'ह्रत्वा नीलं सलिल वसनम्'</ref> गंभीरा के जल को नीला कहा गया है।<ref>'तस्या: किंचित् करधृतमिव प्राप्तवानीरशाखं, ह्रत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधो नितम्बम्'</ref>  
*गंभीरा को आजकल गंभीर कहते हैं। [[चित्तौड़गढ़]] नगरी इसी के तट पर बसी है।  
*गंभीरा को आजकल गंभीर कहते हैं। [[चित्तौड़गढ़]] नगरी इसी के तट पर बसी है।  
*धरमत नामक कस्बा भी गंभीरा नदी के तट पर है।  
*धरमत नामक क़स्बा भी गंभीरा नदी के तट पर है।  
*गंभीरा में 1658 ई. में दारा की सेना को जिसमें [[जोधपुर|जोधपुर नरेश]] [[जसवंत सिंह (राजा)|जसवंत सिंह]] भी सम्मिलित था [[औरंगज़ेब]] ने बुरी तरह हराकर [[दिल्ली]] के राज्य-सिंहासन का मार्ग प्रशस्त बना लिया था।  
*गंभीरा में 1658 ई. में दारा की सेना को जिसमें [[जोधपुर|जोधपुर नरेश]] [[जसवंत सिंह (राजा)|जसवंत सिंह]] भी सम्मिलित था [[औरंगज़ेब]] ने बुरी तरह हराकर [[दिल्ली]] के राज्य-सिंहासन का मार्ग प्रशस्त बना लिया था।  



Revision as of 14:09, 6 April 2015

गंभीरा नदी चर्मण्वती की सहायक नदी है, जो अर्वली पहाड़ के 'जनपव' नामक स्थान से निकलकर राजस्थान और मध्य प्रदेश के ग्वालियर के इलाके में बहती है। चंबल का उद्भव भी इसी स्थान पर हुआ था। बौद्ध ग्रंथ 'महावंश'[1] में भी इस नदी का उल्लेख हुआ है। 'उपतिष्य' नामक ग्राम इसी नदी के तट पर स्थित था। यह नदी अनुराधापुर से सात-आठ मील की ओर बहती थी।

  • गंभीरा नदी का वर्णन कालिदास ने मेघदूत में मेघ के रामगिरि से अलका जाने के मार्ग में, उज्जयिनी के पश्चात तथा चर्मण्वती के पूर्व किया है-[2]
  • यहाँ कालिदास ने गंभीरा के जल को प्रसन्न अथवा निर्मल एवं हर्ष प्रदान करने वाला बताया है। अगले छन्द 33 में[3] गंभीरा के जल को नीला कहा गया है।[4]
  • गंभीरा को आजकल गंभीर कहते हैं। चित्तौड़गढ़ नगरी इसी के तट पर बसी है।
  • धरमत नामक क़स्बा भी गंभीरा नदी के तट पर है।
  • गंभीरा में 1658 ई. में दारा की सेना को जिसमें जोधपुर नरेश जसवंत सिंह भी सम्मिलित था औरंगज़ेब ने बुरी तरह हराकर दिल्ली के राज्य-सिंहासन का मार्ग प्रशस्त बना लिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महावंश 7, 44
  2. 'गभीराया: पयसि सरितश्चेतसीव प्रसन्ने छायात्मापि प्रकृतिसुभगों लप्स्यते ते प्रवेशम्' पूर्वमेघ 42।
  3. 'ह्रत्वा नीलं सलिल वसनम्'
  4. 'तस्या: किंचित् करधृतमिव प्राप्तवानीरशाखं, ह्रत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधो नितम्बम्'

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