जड़ चेतन जग जीव: Difference between revisions
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Revision as of 09:58, 18 May 2016
जड़ चेतन जग जीव
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास | |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस | |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि | |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर | |
भाषा | अवधी भाषा | |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा | |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा | |
काण्ड | बालकाण्ड | |
टिप्पणी | ;रामरूप से जीवमात्र की वंदना |
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि। |
- भावार्थ-
जगत में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, सबको राममय जानकर मैं उन सबके चरणकमलों की सदा दोनों हाथ जोड़कर वन्दना करता हूँ॥7 (ग)॥
left|30px|link=सम प्रकास तम|पीछे जाएँ | जड़ चेतन जग जीव | right|30px|link=देव दनुज नर नाग|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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