हरषित बरषहिं सुमन सुर: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:22, 24 May 2016
हरषित बरषहिं सुमन सुर
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
हरषित बरषहिं सुमन सुर बाजहिं गगन निसान। |
- भावार्थ
देवता हर्षित होकर फूल बरसाते हैं, आकाश में नगाड़े बज रहे हैं। फिर वे सब स्तुति कर-करके अनेकों विमानों पर सुशोभित हुए चले गए॥ 20(ख)॥
left|30px|link=राम राम कहि तनु तजहिं|पीछे जाएँ | हरषित बरषहिं सुमन सुर | right|30px|link=जब रघुनाथ समर रिपु जीते|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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