कपि करि हृदयँ बिचार: Difference between revisions
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Revision as of 05:47, 11 June 2016
कपि करि हृदयँ बिचार
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
- श्री सीता-हनुमान संवाद
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब। |
- भावार्थ
तब हनुमान जी ने हदय में विचार कर (सीता जी के सामने) अँगूठी डाल दी, मानो अशोक ने अंगारा दे दिया। (यह समझकर) सीताजी ने हर्षित होकर उठकर उसे हाथ में ले लिया॥12॥
left|30px|link=नूतन किसलय अनल समाना|पीछे जाएँ | कपि करि हृदयँ बिचार | right|30px|link=तब देखी मुद्रिका मनोहर|आगे जाएँ |
सोरठा-मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख