उहाँ सकोपि दसानन सब: Difference between revisions
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धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ॥ 32(ख)॥ | धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ॥ 32(ख)॥ | ||
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Latest revision as of 11:34, 15 June 2016
उहाँ सकोपि दसानन सब
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | 'रामचरितमानस' |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि। |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | दोहा, चौपाई और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | लंकाकाण्ड |
उहाँ सकोपि दसानन सब सन कहत रिसाइ। |
- भावार्थ
वहाँ (सभा में) क्रोधयुक्त रावण सबसे क्रोधित होकर कहने लगा कि - बंदर को पकड़ लो और पकड़कर मार डालो। अंगद यह सुनकर मुसकराने लगे॥ 32(ख)॥
left|30px|link=तरकि पवनसुत कर गहे|पीछे जाएँ | उहाँ सकोपि दसानन सब | right|30px|link=एहि बधि बेगि सुभट सब धावहु|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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