सप्ताबरन भेद करि: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 33: | Line 33: | ||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
; | ;दोहा | ||
सप्ताबरन भेद करि जहाँ लगें गति मोरि। | सप्ताबरन भेद करि जहाँ लगें गति मोरि। | ||
गयउँ तहाँ प्रभु भुज निरखि ब्याकुल भयउँ बहोरि॥ 79 ख॥ | गयउँ तहाँ प्रभु भुज निरखि ब्याकुल भयउँ बहोरि॥ 79 ख॥ | ||
Line 41: | Line 41: | ||
सातों आवरणों को भेदकर जहाँ तक मेरी गति थी वहाँ तक मैं गया। पर वहाँ भी प्रभु की भुजा को (अपने पीछे) देखकर मैं व्याकुल हो गया॥ 79 (ख)॥ | सातों आवरणों को भेदकर जहाँ तक मेरी गति थी वहाँ तक मैं गया। पर वहाँ भी प्रभु की भुजा को (अपने पीछे) देखकर मैं व्याकुल हो गया॥ 79 (ख)॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=ब्रह्मलोक लगि गयउँ |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= मूदेउँ नयन त्रसित जब भयउँ}} | {{लेख क्रम4| पिछला=ब्रह्मलोक लगि गयउँ |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= मूदेउँ नयन त्रसित जब भयउँ}} | ||
''' | '''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। | ||
Latest revision as of 04:51, 5 July 2016
सप्ताबरन भेद करि
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
सप्ताबरन भेद करि जहाँ लगें गति मोरि। |
- भावार्थ
सातों आवरणों को भेदकर जहाँ तक मेरी गति थी वहाँ तक मैं गया। पर वहाँ भी प्रभु की भुजा को (अपने पीछे) देखकर मैं व्याकुल हो गया॥ 79 (ख)॥
left|30px|link=ब्रह्मलोक लगि गयउँ|पीछे जाएँ | सप्ताबरन भेद करि | right|30px|link=मूदेउँ नयन त्रसित जब भयउँ|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-512
संबंधित लेख