बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ: Difference between revisions
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Revision as of 07:08, 15 July 2016
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
- हनुमान-जाम्बवन्त संवाद
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ। |
- भावार्थ
बलि के बाँधते समय प्रभु इतने बढ़े कि उस शरीर का वर्णन नहीं हो सकता, किंतु मैंने दो ही घड़ी में दौड़कर (उस शरीर की) सात प्रदक्षिणाएँ कर लीं॥29॥
left|30px|link=जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा|पीछे जाएँ | बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ | right|30px|link=अंगद कहइ जाउँ मैं पारा|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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