सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
सपना वर्मा (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 31: | Line 31: | ||
|टिप्पणियाँ = | |टिप्पणियाँ = | ||
}} | }} | ||
;गरुड़-भुशुण्डि-संवाद | |||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> |
Revision as of 10:13, 16 July 2016
सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
- गरुड़-भुशुण्डि-संवाद
सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को है बपुरा आन। |
- भावार्थ
यह माया जब शिव जी और ब्रह्मा जी को भी मोह लेती है, तब दूसरा बेचारा क्या चीज है? जी में ऐसा जानकर ही मुनि लोग उस माया के स्वामी भगवान का भजन करते हैं॥62 (ख)॥
left|30px|link=ग्यानी भगत सिरोमनि|पीछे जाएँ | सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को | right|30px|link=गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-503
संबंधित लेख