समुझि मोरि करतूति कुलु: Difference between revisions
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Revision as of 04:36, 19 July 2016
समुझि मोरि करतूति कुलु
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
समुझि मोरि करतूति कुलु प्रभु महिमा जियँ जोइ। |
- भावार्थ
मेरी करतूत और कुल को समझकर और प्रभु श्री रामचन्द्रजी की महिमा को मन में देख (विचार) कर (अर्थात कहाँ तो मैं नीच जाति और नीच कर्म करने वाला जीव, और कहाँ अनन्तकोटि ब्रह्माण्डों के स्वामी भगवान श्री रामचन्द्रजी! पर उन्होंने मुझ जैसे नीच को भी अपनी अहैतुकी कृपा वश अपना लिया- यह समझकर) जो रघुवीर श्री रामजी के चरणों का भजन नहीं करता, वह जगत में विधाता के द्वारा ठगा गया है॥195॥
left|30px|link=कुसल मूल पद पंकज पेखी|पीछे जाएँ | समुझि मोरि करतूति कुलु | right|30px|link=कपटी कायर कुमति कुजाती|आगे जाएँ |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-260
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