बहुरि सपरिजन भरत कहुँ: Difference between revisions

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और फिर कुटुम्ब सहित [[भरत|भरतजी]] को दिए, क्योंकि ऋषि भरद्वाजजी ने ऐसी ही आज्ञा दे रखी थी। (भरतजी चाहते थे कि उनके सब संगियों को आराम मिले, इसलिए उनके मन की बात जानकर मुनि ने पहले उन लोगों को स्थान देकर पीछे सपरिवार भरतजी को स्थान देने के लिए आज्ञा दी थी।) मुनि श्रेष्ठ ने तपोबल से [[ब्रह्मा]] को भी चकित कर देने वाला वैभव रच दिया॥214॥
और फिर कुटुम्ब सहित [[भरत|भरतजी]] को दिए, क्योंकि ऋषि भरद्वाजजी ने ऐसी ही आज्ञा दे रखी थी। (भरतजी चाहते थे कि उनके सब संगियों को आराम मिले, इसलिए उनके मन की बात जानकर मुनि ने पहले उन लोगों को स्थान देकर पीछे सपरिवार भरतजी को स्थान देने के लिए आज्ञा दी थी।) मुनि श्रेष्ठ ने तपोबल से [[ब्रह्मा]] को भी चकित कर देने वाला वैभव रच दिया॥214॥


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बहुरि सपरिजन भरत कहुँ
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
दोहा

बहुरि सपरिजन भरत कहुँ रिषि अस आयसु दीन्ह।
बिधि बिसमय दायकु बिभव मुनिबर तपबल कीन्ह॥214॥

भावार्थ

और फिर कुटुम्ब सहित भरतजी को दिए, क्योंकि ऋषि भरद्वाजजी ने ऐसी ही आज्ञा दे रखी थी। (भरतजी चाहते थे कि उनके सब संगियों को आराम मिले, इसलिए उनके मन की बात जानकर मुनि ने पहले उन लोगों को स्थान देकर पीछे सपरिवार भरतजी को स्थान देने के लिए आज्ञा दी थी।) मुनि श्रेष्ठ ने तपोबल से ब्रह्मा को भी चकित कर देने वाला वैभव रच दिया॥214॥


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दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-269

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