कहि प्रिय बचन बिबेकमय: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:33, 24 July 2016
रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : श्रीसीता-राम-संवाद
कहि प्रिय बचन बिबेकमय
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
कहि प्रिय बचन बिबेकमय कीन्हि मातु परितोष। |
- भावार्थ
विवेकमय प्रिय वचन कहकर माता को संतुष्ट किया। फिर वन के गुण-दोष प्रकट करके वे जानकीजी को समझाने लगे॥60॥
left|30px|link=जौं सिय भवन रहै कह अंबा|पीछे जाएँ | कहि प्रिय बचन बिबेकमय | right|30px|link=मातु समीप कहत सकुचाहीं|आगे जाएँ |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख