दीन्हि असीस मुनीस उर: Difference between revisions
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Latest revision as of 12:44, 28 July 2016
रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : भरद्वाज-संवाद
दीन्हि असीस मुनीस उर
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
दीन्हि असीस मुनीस उर अति अनंदु अस जानि। |
- भावार्थ
मुनीश्वर भरद्वाजजी ने आशीर्वाद दिया। उनके हृदय में ऐसा जानकर अत्यन्त आनंद हुआ कि आज विधाता ने (श्री सीताजी और लक्ष्मणजी सहित प्रभु श्री रामचन्द्रजी के दर्शन कराकर) मानो हमारे सम्पूर्ण पुण्यों के फल को लाकर आँखों के सामने कर दिया॥106॥
left|30px|link=तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए|पीछे जाएँ | दीन्हि असीस मुनीस उर | right|30px|link=कुसल प्रस्न करि आसन दीन्हे|आगे जाएँ |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख