जद्यपि जनमु कुमातु: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : भरत-भरद्वाज-संवाद</h4>
{{सूचना बक्सा पुस्तक
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg 
|चित्र का नाम=रामचरितमानस
|चित्र का नाम=रामचरितमानस
|लेखक=  
|लेखक=  
Line 32: Line 32:
|टिप्पणियाँ =  
|टिप्पणियाँ =  
}}
}}
;भरत-भरद्वाज-संवाद
{{poemopen}}
{{poemopen}}
<poem>
<poem>

Latest revision as of 12:55, 28 July 2016

रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : भरत-भरद्वाज-संवाद

जद्यपि जनमु कुमातु
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
दोहा

जद्यपि जनमु कुमातु तें मैं सठु सदा सदोस।
आपन जानि न त्यागिहहिं मोहि रघुबीर भरोस॥183॥

भावार्थ

यद्यपि मेरा जन्म कुमाता से हुआ है और मैं दुष्ट तथा सदा दोषयुक्त भी हूँ, तो भी मुझे श्री रामजी का भरोसा है कि वे मुझे अपना जानकर त्यागेंगे नहीं॥183॥


left|30px|link=तुम्ह पै पाँच मोर भल मानी|पीछे जाएँ जद्यपि जनमु कुमातु right|30px|link=भरत बचन सब कहँ प्रिय लागे|आगे जाएँ


दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।




पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-256

संबंधित लेख