राम राम कहि तनु तजहिं: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:39, 28 July 2016
रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्य काण्ड) : खर-दूषण-वध
राम राम कहि तनु तजहिं
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान। |
- भावार्थ
सब ('यही राम है, इसे मारो' इस प्रकार) राम-राम कहकर शरीर छोड़ते हैं और निर्वाण (मोक्ष) पद पाते हैं। कृपानिधान राम ने यह उपाय करके क्षण भर में शत्रुओं को मार डाला॥ 20(क)॥
left|30px|link=महि परत उठि भट भिरत|पीछे जाएँ | राम राम कहि तनु तजहिं | right|30px|link=हरषित बरषहिं सुमन सुर|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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