महाराणा प्रताप और चेतक: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{महाराणा प्रताप विषय सूची}} | |||
[[चित्र:Rana-Pratap-and-Chetak.jpg|thumb|250px|[[राणा प्रताप]] और [[चेतक]]]] | [[चित्र:Rana-Pratap-and-Chetak.jpg|thumb|250px|[[राणा प्रताप]] और [[चेतक]]]] | ||
[[भारतीय इतिहास]] में जितनी [[महाराणा प्रताप]] की बहादुरी की चर्चा हुई है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े [[चेतक]] को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे [[हाथी]] के मस्तक तक उछल सकता था। कुछ लोकगीतों के अलावा [[हिन्दी]] कवि श्यामनारायण पांडेय की [[वीर रस]] [[कविता]] 'चेतक की वीरता' में उसकी बहादुरी की खूब तारीफ़ की गई है। | [[भारतीय इतिहास]] में जितनी [[महाराणा प्रताप]] की बहादुरी की चर्चा हुई है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े [[चेतक]] को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे [[हाथी]] के मस्तक तक उछल सकता था। कुछ लोकगीतों के अलावा [[हिन्दी]] कवि श्यामनारायण पांडेय की [[वीर रस]] [[कविता]] 'चेतक की वीरता' में उसकी बहादुरी की खूब तारीफ़ की गई है। |
Revision as of 12:53, 29 December 2016
[[चित्र:Rana-Pratap-and-Chetak.jpg|thumb|250px|राणा प्रताप और चेतक]] भारतीय इतिहास में जितनी महाराणा प्रताप की बहादुरी की चर्चा हुई है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे हाथी के मस्तक तक उछल सकता था। कुछ लोकगीतों के अलावा हिन्दी कवि श्यामनारायण पांडेय की वीर रस कविता 'चेतक की वीरता' में उसकी बहादुरी की खूब तारीफ़ की गई है।
प्रताप को चेतक की प्राप्ति
जब राणा प्रताप किशोर अवस्था में थे, तब एक बार राणा उदयसिंह ने उनको राजमहल में बुलाया और दो घोड़ों में से एक का चयन करने के लिए कहा। एक घोड़ा सफ़ेद था और दूसरा नीला। जैसे ही प्रताप ने कुछ कहा, उसके पहले ही उनके भाई शक्तिसिंह ने पिता से कहा कि उसे भी एक घोड़ा चाहिए। प्रताप को नील अफ़ग़ानी घोड़ा पसंद था, लेकिन वे सफ़ेद घोड़े की ओर बढ़ते हैं और उसकी तारीफ़ करते जाते हैं। उन्हें सफ़ेद घोड़े की ओर बढ़ते हुए देख कर शक्तिसिंह तेज़ी से घोड़े की ओर जाकर उसकी सवारी कर लेते हैं। उनकी यह शीघ्रता देखकर उदयसिंह वह सफ़ेद घोड़ा शक्तिसिंह को दे देते हैं और नील अफ़ग़ानी घोड़ा प्रताप को मिल जाता है। इसी नीले घोड़े का नाम 'चेतक' था, जो महाराणा प्रताप को बहुत प्रिय था।
हल्दीघाटी युद्ध तथा चेतक
हल्दीघाटी (1576) के युद्ध में राणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक ने अहम भूमिका निभाई थी। हल्दीघाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहां स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह संस्कार किया था। कहा जाता है कि चेतक भी राणा प्रताप की तरह ही बहादुर था। चेतक अरबी नस्ल का घोड़ा था। वह लंबी-लंबी छलांगे मारने में माहिर था। वफ़ादारी के मामले में चेतक की गिनती दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में की गई है। वह हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप का अनूठा सहयोगी था।
हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक, अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊँचाई तक बाज की तरह उछल गया था। फिर महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया। जब मुग़ल सेना महाराणा के पीछे लगी थी, तब चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया, जिसे मुग़ल फौज का कोई घुड़सवार पार न कर सका। प्रताप के साथ युद्ध में घायल चेतक को वीरगति मिली थी। वह अरबी नस्ल वाला नीले रंग का घोड़ा था। राजस्थान में लोग उसे आज भी उसी सम्मान से याद करते हैं, जो सम्मान वे महाराणा को देते हैं। वीरगति के बाद महाराणा ने स्वयं चेतक का अंतिम संस्कार किया था। हल्दीघाटी में उसकी समाधि है। मेवाड़ में लोग चेतक की बहादुरी के लोकगीत गाते हैं।
left|30px|link=महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक|पीछे जाएँ | महाराणा प्रताप और चेतक | right|30px|link=हल्दीघाटी का युद्ध|आगे जाएँ |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Maharana Pratap
- MAHARANA PRATAP JAYANTI (Video Song)
- महाराणा प्रताप जीवनी
- 208 किलो कवच के साथ चलते थे राणा प्रताप