हंगपन दादा: Difference between revisions

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हंगपन दादा
पूरा नाम हवलदार हंगपन दादा
जन्म 2 अक्टूबर, 1979
जन्म भूमि बोरदुरिया, अरुणाचल प्रदेश
मृत्यु 27 मई, 2016
मृत्यु स्थान नौगाम, जम्मू और कश्मीर
पति/पत्नी चासेन लोवांग दादा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय सेना
दस्ता असम रेजिमेंट
सेवा काल 1997-2016
उपाधि हवलदार
संबंधित लेख भारतीय सेना, अशोक चक्र, परमवीर चक्र
अन्य जानकारी भारत के 68वें गणतंत्र दिवस (2017) के मौके पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के लिए शहीद हुए हवलदार हंगपन दादा को मरणोपरांत 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया।

हवलदार हंगपन दादा (अंग्रेज़ी: Hangpan Dada, जन्म- 2 अक्टूबर, 1979, अरुणाचल प्रदेश; शहादत- 27 मई, 2016, जम्मू और कश्मीर) भारतीय सेना के जांबाज सैनिकों में से एक थे, जिन्होंने आतंकवादियों के साथ लड़ते हुए शहादत प्राप्त की। वे 27 मई, 2016 को उत्तरी कश्मीर के शमसाबाड़ी में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए। वीरगति प्राप्त करने से पूर्व उन्होंने चार हथियारबंद आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया। इस शौर्य के लिए 15 अगस्त, 2016 को उन्हें मरणोपरांत 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया। 'अशोक चक्र' शांतिकाल में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।

परिचय

शहीद हंगपन दादा का का जन्म अरुणाचल प्रदेश के बोरदुरिया नामक गाँव में 2 अक्टूबर, 1979 को हुआ था। हंगपन दादा के बड़े भाई लापहंग दादा के अनुसार- हंगपन बचपन में शरारती थे। वे बचपन में पेड़ पर चढ़कर फलों को तोड़कर खुद भी खाते और अपने दोस्‍तों को भी खिलाते। वे शारीरिक रूप से बेहद फिट थे। हर सुबह दौड़ लगाते, पुश-अप करते। इसी दौरान खोंसा में सेना की भर्ती रैली हुई, जहां वह भारतीय सेना के लिए चुन लिये गए।

  • उनके गाँव के ही डॉन बॉस्को चर्च के फ़ादर प्रदीप के अनुसार- हंगपन दादा सेना में जाने के बाद अपने काम से काफ़ी खुश थे। वे मेरे पास आए थे और मुझसे कहा था कि फादर मेरी पोस्टिंग जम्मू और कश्मीर हो रही है।"
  • हंगपन दादा के बचपन के मित्र सोमहंग लमरा के अनुसार- "आज यदि मैं जिंदा हूं तो हंगपन दादा की वजह से। उन्‍होंने बचपन में मुझे पानी में डूबने से बचाया था। हंगपन को फ़ुटबॉल खेलना, दौड़ना सरीखे सभी कामों में जीतना पसंद था।"[1]

शौर्य गाथा

26 मई, 2016 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले के नौगाम सेक्टर में आर्मी ठिकानों का आपसी संपर्क टूट गया। तब हवलदार हंगपन दादा को उनकी टीम के साथ भाग रहे आतंकवादियों का पीछा करने और उन्हें पकड़ने का जिम्मा सौंपा गया। उनकी टीम एलओसी के पास शामशाबारी माउंटेन पर करीब 13000 की फीट की ऊंचाई वाले बर्फीले इलाके में इतनी तेजी से आगे बढ़ी कि उन्होंने आतंकवादियों के बच निकलने का रास्ता रोक दिया। इसी बीच आतंकवादियों ने टीम पर गोलीबारी शुरू कर दी। आतंकवादियों की तरफ़ से हो रही भारी गोलीबारी की वजह से इनकी टीम आगे नहीं बढ़ पा रही थी। तब हवलदार हंगपन दादा जमीन के बल लेटकर और पत्थरों की आड़ में छुपकर अकेले आतंकियों के काफ़ी करीब पहुंच गए। फिर दो आतंकवादियों को मार गिराया। लेकिन इस गोलीबारी में वे बुरी तरह जख्मी हो गए। तीसरा आतंकवादी बच निकला और भागने लगा। हंगपन दादा ने जख्मी होने के बाद भी उसका पीछा किया और उसे पकड़ लिया। इस दौरान उनकी इस आतंकी के साथ हाथापाई भी हुई। लेकिन उन्होंने इसे भी मार गिराया। इस एनकाउंटर में चौथा आतंकी भी मार गिराया गया। [[चित्र:Hangpan-Dada-Ashok-Chakra.jpg|left|thumb|250px|राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से अशोक चक्र स्वीकार करतीं हंगपन दादा की पत्नी]]

'अशोक चक्र' से सम्मानित

भारत के 68वें गणतंत्र दिवस (2017) के मौके पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के लिए शहीद हुए हवलदार हंगपन दादा को मरणोपरांत 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया। राजपथ पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों शहीद की पत्नी चासेन लोवांग दादा ने भावुक आंखों से ये सम्मान ग्रहण किया। भारतीय सेना ने हंगपन दादा की इस शहादत पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म भी रिलीज की, जिसका नाम था- "The Warriors Spirit"।[2]

स्मारक

नवंबर, 2016 में शिलांग के असम रेजीमेंटल सेंटर (एआरसी) में प्लेटिनियम जुबली सेरेमनी के दौरान एक एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक का नाम हंगपन दादा के नाम पर रखा गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अशोक चक्र पाने वाले जांबाज हंगपन दादा (हिन्दी) khabar.ndtv.com। अभिगमन तिथि: 02 फ़रवरी, 2017।
  2. शहीद हंगपन दादा के बलिदान की कहानी (हिन्दी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 02 फ़रवरी, 2017।

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