राम राज नभगेस सुनु: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
 
Line 38: Line 38:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ
;भावार्थ
(काकभुशुण्डि जी कहते हैं-) हे पक्षीराज [[गरुड़ |गुरुड़ जी]]! सुनिए। [[राम|श्री राम]] के राज्य में जड़, चेतन सारे जगत में काल, कर्म स्वभाव और गुणों से उत्पन्न हुए दुःख किसी को भी नहीं होते (अर्थात इनके बंधन में कोई नहीं है)॥21॥
(काकभुशुण्डि जी कहते हैं-) हे पक्षीराज [[गरुड़ |गुरुड़ जी]]! सुनिए। [[राम|श्री राम]] के राज्य में जड़, चेतन सारे जगत् में काल, कर्म स्वभाव और गुणों से उत्पन्न हुए दुःख किसी को भी नहीं होते (अर्थात इनके बंधन में कोई नहीं है)॥21॥
{{लेख क्रम4| पिछला=सब निर्दंभ धर्मरत पुनी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=भूमि सप्त सागर मेखला}}
{{लेख क्रम4| पिछला=सब निर्दंभ धर्मरत पुनी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=भूमि सप्त सागर मेखला}}



Latest revision as of 13:54, 30 June 2017

राम राज नभगेस सुनु
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
दोहा

राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।
काल कर्म सुभाव गुन कृत दु:ख काहुहि नाहिं॥21॥

भावार्थ

(काकभुशुण्डि जी कहते हैं-) हे पक्षीराज गुरुड़ जी! सुनिए। श्री राम के राज्य में जड़, चेतन सारे जगत् में काल, कर्म स्वभाव और गुणों से उत्पन्न हुए दुःख किसी को भी नहीं होते (अर्थात इनके बंधन में कोई नहीं है)॥21॥


left|30px|link=सब निर्दंभ धर्मरत पुनी|पीछे जाएँ राम राज नभगेस सुनु right|30px|link=भूमि सप्त सागर मेखला|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख