भगत भूमि भूसुर सुरभि: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
कविता भाटिया (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
Line 38: | Line 38: | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
वही कृपालु श्री [[रामचन्द्र|रामचन्द्रजी]] भक्त, भूमि, ब्राह्मण, गो और देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके लीलाएँ करते हैं, जिनके सुनने से | वही कृपालु श्री [[रामचन्द्र|रामचन्द्रजी]] भक्त, भूमि, ब्राह्मण, गो और देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके लीलाएँ करते हैं, जिनके सुनने से जगत् के जंजाल मिट जाते हैं॥93॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला= राम ब्रह्म परमारथ रूपा |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सखा समुझि अस परिहरि मोहू}} | {{लेख क्रम4| पिछला= राम ब्रह्म परमारथ रूपा |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सखा समुझि अस परिहरि मोहू}} |
Latest revision as of 14:05, 30 June 2017
भगत भूमि भूसुर सुरभि
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। |
- भावार्थ
वही कृपालु श्री रामचन्द्रजी भक्त, भूमि, ब्राह्मण, गो और देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके लीलाएँ करते हैं, जिनके सुनने से जगत् के जंजाल मिट जाते हैं॥93॥
left|30px|link=राम ब्रह्म परमारथ रूपा|पीछे जाएँ | भगत भूमि भूसुर सुरभि | right|30px|link=सखा समुझि अस परिहरि मोहू|आगे जाएँ |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख