पिंगल महर्षि: Difference between revisions
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'''महर्षि पिंगल''' अपने समय के | '''महर्षि पिंगल''' अपने समय के महान् लेखकों में गिने जाते थे। इन्होंने 'छन्दःशास्त्र' (छन्दःसुत्र) की रचना की थी। इनका जन्म लगभग 400 ईसा पूर्व का माना जाता है। कई [[इतिहासकार]] इन्हें '[[पाणिनि]]' का छोटा भाई मानते है। | ||
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महर्षि पिंगल का 'छन्दःशास्त्र' आठ अलग-अलग अध्यायों में विभक्त है। आठवे अध्याय में पिंगल ने [[छंद|छंदों]] को संक्षेप करने तथा उनके वर्गीकरण के बारे में लिखा है तथा द्विआधारीय रचनाओं को गणितीय रूप में लिखने के बारे में बताया।<ref>{{cite web |url=http://www.vedicbharat.com/2013/03/binary-number-system-by-pingala.html |title=द्विआधारीय गणित के जनक- महर्षि पिंगल|accessmonthday= 11 दिसम्बर|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> इनके छंदों की लम्बाई नापने के लिए [[वर्णमाला (व्याकरण)|वर्णों]] की लम्बाई या उसके उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर उसे दो भागों में बांटा जा सकता है- | महर्षि पिंगल का 'छन्दःशास्त्र' आठ अलग-अलग अध्यायों में विभक्त है। आठवे अध्याय में पिंगल ने [[छंद|छंदों]] को संक्षेप करने तथा उनके वर्गीकरण के बारे में लिखा है तथा द्विआधारीय रचनाओं को गणितीय रूप में लिखने के बारे में बताया।<ref>{{cite web |url=http://www.vedicbharat.com/2013/03/binary-number-system-by-pingala.html |title=द्विआधारीय गणित के जनक- महर्षि पिंगल|accessmonthday= 11 दिसम्बर|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> इनके छंदों की लम्बाई नापने के लिए [[वर्णमाला (व्याकरण)|वर्णों]] की लम्बाई या उसके उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर उसे दो भागों में बांटा जा सकता है- |
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चित्र:Disamb2.jpg पिंगल | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पिंगल (बहुविकल्पी) |
महर्षि पिंगल अपने समय के महान् लेखकों में गिने जाते थे। इन्होंने 'छन्दःशास्त्र' (छन्दःसुत्र) की रचना की थी। इनका जन्म लगभग 400 ईसा पूर्व का माना जाता है। कई इतिहासकार इन्हें 'पाणिनि' का छोटा भाई मानते है।
छन्दःशास्त्र
महर्षि पिंगल का 'छन्दःशास्त्र' आठ अलग-अलग अध्यायों में विभक्त है। आठवे अध्याय में पिंगल ने छंदों को संक्षेप करने तथा उनके वर्गीकरण के बारे में लिखा है तथा द्विआधारीय रचनाओं को गणितीय रूप में लिखने के बारे में बताया।[1] इनके छंदों की लम्बाई नापने के लिए वर्णों की लम्बाई या उसके उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर उसे दो भागों में बांटा जा सकता है-
- 'गुरु' (बड़े के लिए)
- 'लधु' (छोटे के लिए)
इसके लिए सर्वप्रथम एक पद (वाक्य) को वर्णों में विभाजित करना होता है। विभाजित करने हेतु निम्न नियम दिए गये है-
- एक वर्ण में स्वर अवश्य होना चाहिए तथा इसमें केवल एक ही स्वर अवश्य होना चाहिए।
- एक वर्ण सदैव व्यंजन से प्रारंभ होना चाहिए, परन्तु वर्ण स्वर से प्रारंभ हो सकता है, केवल यदि वर्ण रेखा के प्रारंभ में हो।
- किसी वर्ण को जितना हो सके, उतना अधिक दीर्घ बनाना चाहिए।
- जिस वर्ण का छोटे स्वर से अंत होता है (अ, इ, उ आदि) उसे 'लघु' तथा शेष सारे 'गुरु' कहे जाते है, अर्थात जिस किसी वर्ण के पीछे कोई मात्रा न हो, वह 'लघु' तथा मात्रा वाले 'गुरु' कहे जाते हैं। जैसे- 'मे', 'री' आदि
- उदहारण
"त्वमेव माता च पिता त्वमेव"
इस श्लोक को उपरोक्त वर्णन के आधार पर विभाजित किया गया है।
त्व मे व मा ता च पि ता त्व मे व
L H L H H L L H L H L
"त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव"
त्व मे व बन् धुश् च स खा त्व मे व
L H L H H L L H L H L
बन्धु को विभक्त करते समय आधे न (न्) को ब के साथ रखा गया है। (बन्) क्योंकि तीसरा नियम कहता है "किसी वर्ण को हो सके उतना अधिक दीर्घ बनाना चाहिए" तथा बन् को साथ रखने पर दूसरा नियम भी सत्य होता है। चूँकि बन् लाइन के आरंभ में नही है, इसलिए व्यंजन से प्रारंभ होना अनिवार्य है और प्रथम नियम भी बन् में सत्य हो रहा है, क्योकि ब में अ (स्वर) है। धुश् में भी प्रथम तथा तृतीय नियम सत्य होते है। आधे वर्ण में अंत होने वाले वर्ण, जैसे- 'बन्', 'धुश्' गुरु की श्रेणी में आएंगे। लघु और गुरु को क्रमश: "|" और "S"[2] से भी प्रदर्शित किया जाता है।
इस प्रकार उपरोक्त चार नियमो द्वारा किसी भी श्लोक आदि को द्विआधारीय रचना में लिखा जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ द्विआधारीय गणित के जनक- महर्षि पिंगल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 दिसम्बर, 2013।
- ↑ ये अंग्रेज़ी वर्णमाला का S नहीं है।
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