कनफेड़: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org")
Line 5: Line 5:
वृषणशोथ (आरकाइटिस), डिंबशोथ, अग्न्याशयशोथ (पैंक्रिऐटाइटिस), मूत्र में ऐल्ब्युमिन और मेनिनजीज़ का प्रदाह (सूजन) हो जा सकता है।
वृषणशोथ (आरकाइटिस), डिंबशोथ, अग्न्याशयशोथ (पैंक्रिऐटाइटिस), मूत्र में ऐल्ब्युमिन और मेनिनजीज़ का प्रदाह (सूजन) हो जा सकता है।
==चिकित्सा==
==चिकित्सा==
रोग के प्रारंभ में मुख की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। रोगी का बिस्तर गर्म रखना चाहिए और जब तक सूजन दूर न हो जाय हल्का भोजन, [[दूध]], [[चाय]] और [[फल]] का रस देना चाहिए। ए.पी.सी. नामक टिकिया (टैबलेट) दिन में तीन बार, या सल्फ़ाडाइज़ीन टिकिया दिन में चार-बार देना लाभदायक है। इकथिआल-बेलाडोना-ग्लिसरीन का सूजन पर लेप करना, उस पर गरम [[घी]] लगा रेंड का पत्ता रखकर और उसके ऊपर रूई रखकर बाँध देना भी बहुत हितकर है।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC |title=कनफेड़|accessmonthday=23 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिंदी }}</ref>  
रोग के प्रारंभ में मुख की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। रोगी का बिस्तर गर्म रखना चाहिए और जब तक सूजन दूर न हो जाय हल्का भोजन, [[दूध]], [[चाय]] और [[फल]] का रस देना चाहिए। ए.पी.सी. नामक टिकिया (टैबलेट) दिन में तीन बार, या सल्फ़ाडाइज़ीन टिकिया दिन में चार-बार देना लाभदायक है। इकथिआल-बेलाडोना-ग्लिसरीन का सूजन पर लेप करना, उस पर गरम [[घी]] लगा रेंड का पत्ता रखकर और उसके ऊपर रूई रखकर बाँध देना भी बहुत हितकर है।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC |title=कनफेड़|accessmonthday=23 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिंदी }}</ref>  





Revision as of 12:27, 25 October 2017

कनफेड़ (अन्य नाम: कनपेड़, कर्णफेर, गलसुआ अथवा मंप्स) एक संक्रामक रोग हैं, जो पाव्य विषाणु (छन सकने योग्य विषाणु ) के कारण होता है। वैसे तो यह रोग किसी भी अवस्था के मनुष्य को हो सकता है, किंतु बालकों में यह अधिक होता है। इस रोग में कान के आगे तथा नीचे वाली कर्णमूल-ग्रंथियाँ (पैरोटिड ग्लैंड्स) सूज जाती है। रोगी को 101 - 102 °F ज्वर हो जाता है। कभी-कभी ताप 104 - 105 °F भी हो जाता है। परंतु साधारणत: ज्वर का ताप 102 °F रहता है। ज्वर प्राय: एकाएक होता है या शीतकंपन से आरंभ करके। रोगी की कर्णमूल ग्रंथियों पर और मुख के भीतर लाली हो जाती है। उसे सिर पीड़ा, निर्बलता और अरुचि भी हो जाती है। वह बेचैनी में अंडबंड बकने लगता है। गले में सूजन होने के कारण ग्रीवा को घुमाने और खाद्य पदार्थ चबाने में पीड़ा होती है। सामान्यत: पहले एक पार्श्व की ग्रंथियों में सूजन होती है और एक आध दिन के उपरांत दूसरे पार्श्व में भी सूजन हो जाती है, अथवा दोनों और साथ ही साथ सूजन आरंभ होती है। ज्वर तथा सूजन की तीव्रता तीन-चार दिन तक रहती है और एक सप्ताह में रोगी ठीक हो जाता है।

उद्भवनकाल

रोग का उद्भवनकाल (इनक्यूबेशन पीरीयड) साधारणत: 21 दिन का होता है, किंतु कभी-कभी यह अवधि घटकर केवल 14 दिन की या बढ़कर 35 दिन तक की भी हो जाती है। कनपेड़ प्राय: रोगी की नाक के स्राव, राल या थूक से वायु द्वारा फैलता है। यह अति संक्रामक रोग है। स्कूलों, छात्रावासों तथा सैनिक छावनियों में तीव्रता से फैलता है। इस रोग में सबसे अच्छी बात यह होती है कि ग्रंथियों में पूयस्राव नहीं होता और इससे मृत्यु भी नहीं होती। इसका संक्रमणकाल 21 दिन है। अत: बच्चों को स्कूल, अथवा युवकों को कालेज या विश्वविद्यालय, या अपने काम पर, रोग प्रारंभ होने से तीन सप्ताह तक नहीं जाना चाहिए। घर में एक बच्चे को रोग हो जाने पर माँ की असावधानी से परिवार के प्राय: सब बच्चे इससे पीड़ित हो जाते हैं। यह रोग शीतकाल में अधिक होता है।

उपद्रव

वृषणशोथ (आरकाइटिस), डिंबशोथ, अग्न्याशयशोथ (पैंक्रिऐटाइटिस), मूत्र में ऐल्ब्युमिन और मेनिनजीज़ का प्रदाह (सूजन) हो जा सकता है।

चिकित्सा

रोग के प्रारंभ में मुख की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। रोगी का बिस्तर गर्म रखना चाहिए और जब तक सूजन दूर न हो जाय हल्का भोजन, दूध, चाय और फल का रस देना चाहिए। ए.पी.सी. नामक टिकिया (टैबलेट) दिन में तीन बार, या सल्फ़ाडाइज़ीन टिकिया दिन में चार-बार देना लाभदायक है। इकथिआल-बेलाडोना-ग्लिसरीन का सूजन पर लेप करना, उस पर गरम घी लगा रेंड का पत्ता रखकर और उसके ऊपर रूई रखकर बाँध देना भी बहुत हितकर है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कनफेड़ (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख