बनारसी दास: Difference between revisions
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'''बनारसी दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Banarasi Das'', जन्म- [[8 जुलाई]] [[1912]]; मृत्यु- [[3 अगस्त]] [[1985]]) [[भारत]] के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्हें "बाबू बनारसी दास" के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ मात्र | '''बनारसी दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Banarasi Das'', जन्म- [[8 जुलाई]] [[1912]]; मृत्यु- [[3 अगस्त]] [[1985]]) [[भारत]] के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्हें "बाबू बनारसी दास" के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ मात्र 15 वर्ष की आयु में मोर्चा खोल दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में उनका अहम योगदान रहा। वर्ष [[1979]] में बनारसी दास [[उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री]] बने थे। वे [[1962]] में सिकंदराबाद सीट से [[कांग्रेस]] के टिकट पर विधायक चुने गए। फिर खुर्जा से भी विधायक चुने गए। इसके बाद [[28 फ़रवरी]] 1979 से [[17 फ़रवरी]] [[1980]] तक [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुख्यमंत्री]] रहे। बाबू बनारसी दास ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिचय ग्रंथों का प्रकाशन कराया था। | ||
==परिचय== | |||
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*बनारसी दास जी ने दलितोद्धार आंदोलन में भी अहम भूमिका निभायी थी और तमाम कठिन मौंकों पर समाज के सबसे दबे-कुचले तबकों के साथ वे खड़े हुए। उनके चलते कई जगहों पर दलित-वंचित तबकों को सार्वजनिक कुओं से पानी लेने औऱ मंदिरों तथा धर्मशालाओं में प्रवेश का मौका मिला। इसी दौरान सहभोज का आयोजन करने के साथ, उनकी बस्तियों में सफाई अभियान चला तथा अनेठ पाठशालाऐं उनके बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए खोली गयीं।<ref name="aa"/> | |||
==अनूठा रिकॉर्ड== | |||
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चित्र:Disamb2.jpg बनारसी दास | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- बनारसी दास (बहुविकल्पी) |
बनारसी दास (अंग्रेज़ी: Banarasi Das, जन्म- 8 जुलाई 1912; मृत्यु- 3 अगस्त 1985) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्हें "बाबू बनारसी दास" के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ मात्र 15 वर्ष की आयु में मोर्चा खोल दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में उनका अहम योगदान रहा। वर्ष 1979 में बनारसी दास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। वे 1962 में सिकंदराबाद सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए। फिर खुर्जा से भी विधायक चुने गए। इसके बाद 28 फ़रवरी 1979 से 17 फ़रवरी 1980 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। बाबू बनारसी दास ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिचय ग्रंथों का प्रकाशन कराया था।
परिचय
बाबू बनारसी दास का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर ज़िले में 8 जुलाई 1912 में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में शुरू हुई। छठीं कक्षा में उन्होंने बुलंदशहर के राजकीय विद्यालय में प्रवेश लिया। बनारसी दास ने 1936 में विद्यावती देवी के साथ विवाह किया।[1] मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही बनारसी दास स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। 1928 में 'नौजवान भारत सभा' और 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। 3 नवंबर 1929 को महात्मा गांधी ने बुलंदशहर में दौरा किया तो वहां एकदम माहौल बन गया।
फिर 1930 में जब गांधीजी ने नमक सत्याग्रह किया तो माहौल जज्बे में बदल गया। 1930 का साल बनारसी दास के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण था। 1 अप्रैल, 1930 को यू.पी. के तत्कालीन गवर्नर सर मैल्कम हेली ने बुलंदशहर की यात्रा की। लोगों ने दबा के विरोध किया। विरोध का पुलिस ने जमकर दमन किया। युवाओं पर जमकर लाठियां बरसीं। बनारसी दास भी उन्हीं युवाओं में से थे। साइकिल पर गांव-गांव घूमते थे। 16 की उम्र में बनारसी दास ने अपने गांव में कन्या पाठशाला लगाई थी, जिसमें वह खुद पढ़ाते थे। उसी वक्त गांधीजी की बातों से प्रभावित होकर उन्होंने छुआछूत मिटाने के लिए सहभोज कर लिया। इसके चलते गांव तो गांव, इनके परिवार ने भी इनका बहिष्कार कर दिया।[2]
महत्त्वपूर्ण निर्णय
- बाबू बनारसी दास 28 फ़रवरी 1979 से 17 फ़रवरी 1980 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने अपने सीमित मुख्यमंत्री काल में भी तमाम परंपराएं कायम कीं। बाबूजी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने कालिदास मार्ग की मुख्यमंत्री की सरकारी कोठी हासिल करने के बजाय कैंट के अपने मकान में ही रहना पसंद किया। इसी तरह मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने न लंबा तामझाम रखा न सुरक्षा। हमेशा उऩका प्रयास रहा कि आम आदमी उनसे आसानी से मिल सके। उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष को पारदर्शी बनाने के लिए उसके ऑडिट करने का आदेश दिया था।
- बनारसी दास जी ने दलितोद्धार आंदोलन में भी अहम भूमिका निभायी थी और तमाम कठिन मौंकों पर समाज के सबसे दबे-कुचले तबकों के साथ वे खड़े हुए। उनके चलते कई जगहों पर दलित-वंचित तबकों को सार्वजनिक कुओं से पानी लेने औऱ मंदिरों तथा धर्मशालाओं में प्रवेश का मौका मिला। इसी दौरान सहभोज का आयोजन करने के साथ, उनकी बस्तियों में सफाई अभियान चला तथा अनेठ पाठशालाऐं उनके बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए खोली गयीं।[1]
अनूठा रिकॉर्ड
राज्यसभा में एक सभापति होता है और एक उप-सभापति। सभापति उप-राष्ट्रपति होता है। ये ही सदस्यों को शपथ दिलाते हैं। लेकिन एक प्रोटेम चेयरमैन भी होता है। दोनों के न रहने पर वही सदस्यों को शपथ दिलाता है, किन्तु भारत के इतिहास में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है कि प्रोटेम चेयरमैन ने सदस्यों को शपथ दिलाई थी। ये चेयरमैन थे- बाबू बनारसी दास। ये मौका आया था 1977 में। उप-राष्ट्रपति बी. डी. जत्ती को कार्यकारी राष्ट्रपति का पद संभालना पड़ा और उप-सभापति गोदे मुराहरी लोकसभा के सांसद चुन लिए गये थे। जब 20 मार्च 1977 को ये पद भी खाली हो गया तो राष्ट्रपति के आदेश पर 20 मार्च से 30 मार्च 1977 तक बाबू बनारसी दास को राज्यसभा का चेयरमैन बनाया गया और यह इतिहास बन गया।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 यूपी के वो मुख्यमंत्री जिनके सामने चुनाव लड़ने की किसी की हिम्मत नहीं हुई (हिंदी) inextlive.com। अभिगमन तिथि: 16 फरवरी, 2020।
- ↑ 2.0 2.1 यूपी का वो मुख्यमंत्री जिसे जामुन के पेड़ से बांधकर पीटा गया था (हिंदी) thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 13 फरवरी, 2020।
बाहरी कड़ियाँ
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क्रमांक | राज्य | मुख्यमंत्री | तस्वीर | पार्टी | पदभार ग्रहण |