जैनेन्द्र व्याकरण: Difference between revisions

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*[[जैन धर्म]] की मान्यतानुसार [[महावीर|भगवान महावीर]], जो कि जन्म से ही मति, श्रुत एवं अवधि ज्ञान के धनी थे, उनके [[माता]]-[[पिता]] उन्हें अध्ययन हेतु एक अध्यापक के पास लेकर जाते हैं। उस समय सौधर्म देवलोक के [[इंद्र|देवराज इंद्र]] को यह बात पता चलने पर वे विचार करते हैं कि महावीर तो परमात्मा हैं एवं ज्ञानवान हैं। इनके माता-पिता को यह बात मालूम नहीं; अतः इन्हें पढ़ाने के लिए पाठशाला लेकर आये हैं। तब इंद्र एक वृद्ध [[ब्राह्मण]] का रूप बनाकर उस पाठशाला में आते हैं और अध्यापक से [[व्याकरण]] के कठिन प्रश्न पूछते हैं। जब अध्यापक उन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते, तब महावीर उन सभी प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
 
*इन प्रश्न और उत्तरों का संकलन ही 'जैनेन्द्र व्याकरण' कहलाया। [[महावीर]] को 'जिन' भी कहा जाता है। इंद्र के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का 'जिन' के द्वारा उत्तर दिया गया, अतः यह "जैनेन्द्र व्याकरण" के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इन प्रश्न और उत्तरों का संकलन ही 'जैनेन्द्र व्याकरण' कहलाया। [[महावीर]] को 'जिन' भी कहा जाता है। इंद्र के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का 'जिन' के द्वारा उत्तर दिया गया, अतः यह "जैनेन्द्र व्याकरण" के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

Latest revision as of 06:58, 14 May 2020

जैनेन्द्र व्याकरण पाणिनीय उत्तरकालीन शब्दानुशासन है, जो आचार्य देवनन्दि द्वारा छठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखा गया।

  • जैन धर्म की मान्यतानुसार भगवान महावीर, जो कि जन्म से ही मति, श्रुत एवं अवधि ज्ञान के धनी थे, उनके माता-पिता उन्हें अध्ययन हेतु एक अध्यापक के पास लेकर जाते हैं। उस समय सौधर्म देवलोक के देवराज इंद्र को यह बात पता चलने पर वे विचार करते हैं कि महावीर तो परमात्मा हैं एवं ज्ञानवान हैं। इनके माता-पिता को यह बात मालूम नहीं; अतः इन्हें पढ़ाने के लिए पाठशाला लेकर आये हैं। तब इंद्र एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप बनाकर उस पाठशाला में आते हैं और अध्यापक से व्याकरण के कठिन प्रश्न पूछते हैं। जब अध्यापक उन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते, तब महावीर उन सभी प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
  • इन प्रश्न और उत्तरों का संकलन ही 'जैनेन्द्र व्याकरण' कहलाया। महावीर को 'जिन' भी कहा जाता है। इंद्र के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का 'जिन' के द्वारा उत्तर दिया गया, अतः यह "जैनेन्द्र व्याकरण" के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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