सी. वाई. चिन्तामणि: Difference between revisions
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Latest revision as of 06:35, 10 February 2021
सी. वाई. चिन्तामणि
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जन्म | 10 अप्रॅल, 1880 |
मृत्यु | 1 जुलाई, 1941 |
कर्म भूमि | भारत |
प्रसिद्धि | सम्पादक तथा राजनीतिज्ञ |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सी. वाई. चिन्तामणि अपने राजनीतिक जीवन में उदारवाद के समर्थक थे। वे दो बार 'नेशनल लिबरेशन फेडरेशन' के अध्यक्ष भी चुने गए थे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
सी. वाई. चिन्तामणि (अंग्रेज़ी: C. Y. Chintamani, जन्म: 10 अप्रॅल, 1880; मृत्यु: 1 जुलाई, 1941) स्वतंत्रता पूर्व भारत के प्रतिष्ठित संपादकों तथा उदारवादी दल के संस्थापकों में से एक थे। वे इलाहाबाद के एक साप्ताहिक पत्र 'द इण्डियन पीपुल' और पटना के 'हिन्दुस्तान रिव्यू' का संपादन करते थे। सी. वाई. चिन्तामणि भारतीय राष्ट्रीय उदारवादी (दल) परिसंघ के सदस्य रहे थे। गोलमेज सम्मेलन में उन्हें उदारवादी दल का प्रतिनिधि भी चुना गया था।
परिचय
सी. वाई. चिन्तामणि का जन्म 10 अप्रॅल सन 1880 ई. को हुआ था। वे पत्रकार-राजनीतिज्ञ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार के लिए लगातार संघर्ष करते रहे। इलाहाबाद से निकलने वाले अख़बार 'द लीडर' के संपादक होने के दौरान उन्होंने किसी को नहीं बख्शा। यहां तक कि उन्होंने अपने गुरु गोपाल कृष्ण गोखले तक की भी परवाह नहीं की। वे अख़बार के बोर्ड के सदस्यों की आलोचना करने में भी कभी हिचकिचाते नहीं थे और यह उनकी ईमानदारी का ही नतीजा था, जिसने उन्हें हमेशा ही अपने ढंग से काम करने की आज़ादी दी।
उदारवाद के समर्थक
सी. वाई. चिन्तामणि अपने राजनीतिक जीवन में उदारवाद के समर्थक थे। वे दो बार 'लिबरल पार्टी' (या नेशनल लिबरेशन फेडरेशन) के अध्यक्ष भी चुने गए। वे गांधीवादी सत्याग्रह और असहयोग के समर्थक नही थे, वे उन्हें लोक-लुभावन कदम बताते थे। सी. वाई. चिन्तामणि उस समय कांग्रेस में घर कर रहे असहमति को बर्दाश्त न किए जाने के रुझान से भी काफ़ी व्यथित थे।[1]
स्वाधीनता आंदोलन के दिनों का विख्यात पत्र ‘लीडर’ के सम्पादक सी. वाई. चिन्तामणि थे। एक बार मोतीलाल नेहरू जो स्वयं भी बोर्ड के सदस्य थे, ने उनके सम्पादकीय को बोर्ड की नीतियों के लिए हानिकार बताया और उसमें कुछ बदलाव का प्रस्ताव रखा। इस पर सी. वाई. चिन्तामणि ने दो टूक लहजे में कहा कि ‘बोर्ड के पास मुझे बर्खास्त करने का पूरा अधिकार है, लेकिन मेरे सम्पादकीय को बदलने का अधिकार नहीं है।‘ इस पर मोतीलाल नेहरू निरुत्तर हो गए।[2]
मालवीय जी से मतभेद
इसी प्रकार एक बार उनका मदन मोहन मालवीय से मतभेद हो गया। उन्होंने उनके आगे अपना त्याग पत्र रख दिया। उस अंदाज़में नहीं, जिस अंदाज़में आज के राजनीतिज्ञ अपने त्याग पत्रों के द्वारा सत्ता एवं सम्पदा के लिए आलाकमान को ‘ब्लैकमेल’ करते हैं, बल्कि पूरी गम्भीरता के साथ, संजीदगी के साथ। मालवीय जी ने अपने विवेक और विनम्रता का परिचय दिया और कहा- ‘लीडर मालवीय के बिना तो जिंदा रह सकता है, पर सी. वाई. चिन्तामणि के बिना नहीं रह सकता।‘ यह था प्रेस के मालिकों का समर्पण, प्रेस की स्वतंत्रता और सम्पादक नामक संस्था का गौरव।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सी. वाई. चिन्तामणि (हिंदी) azadi.me। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2018।
- ↑ Hindi Patrakarita : Roopak Banam Mithak (हिंदी) google books। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2018।