आइ गए बगमेल धरहु: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "तेजी " to "तेज़ी") |
||
Line 38: | Line 38: | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
'पकड़ो-पकड़ो' पुकारते हुए [[राक्षस]] योद्धा बाग छोड़कर (बड़ी | 'पकड़ो-पकड़ो' पुकारते हुए [[राक्षस]] योद्धा बाग छोड़कर (बड़ी तेज़ीसे) दौड़े हुए आए (और उन्होंने श्री रामजी को चारों ओर से घेर लिया), जैसे बालसूर्य (उदयकालीन सूर्य) को अकेला देखकर मन्देह नामक दैत्य घेर लेते हैं॥18॥ | ||
Latest revision as of 08:22, 10 February 2021
आइ गए बगमेल धरहु
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
आइ गए बगमेल धरहु धरहु धावत सुभट। |
- भावार्थ
'पकड़ो-पकड़ो' पुकारते हुए राक्षस योद्धा बाग छोड़कर (बड़ी तेज़ीसे) दौड़े हुए आए (और उन्होंने श्री रामजी को चारों ओर से घेर लिया), जैसे बालसूर्य (उदयकालीन सूर्य) को अकेला देखकर मन्देह नामक दैत्य घेर लेते हैं॥18॥
left|30px|link=कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर|पीछे जाएँ | आइ गए बगमेल धरहु | right|30px|link=प्रभु बिलोकि सर सकहिं न डारी|आगे जाएँ |
सोरठा- सोरठा मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख